Ekadashi Vrat : हरि प्रबोधिनी एकादशी कल, भगवान विष्णु त्यागते हैं निद्रा, सुख- शांति के लिए करें ये खास उपाय
November 3, 2022हरि प्रबोधिनी एकादशी 4 नवम्बर दिन शुक्रवार को मनायी जायेगी। भगवान विष्णु ने शंखासुर का वध कर धरती को पाप से मुक्त किया था। एकादशी व्रत से रोग के साथ मानसिक व आर्थिक कष्ट दूर होता है। व्रतधारियों को शनिवार को दस बजे के पूर्व पारण करना होगा। महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को हरि प्रबोधिनी देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष शुक्रवार के दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी है। गन्ने के खेत में जाकर गन्ने की पूजा कर स्वयं भी सेवन करना चाहिए। एकादशी व्रती को चाहिए की दशमी के दिन एकाहार करें।
उस दिन तेल के जगह घी का प्रयोग करें। नमक में सेंधा, अन्न में गेंहू का आटा व शाक में वहुविजी का परित्याग करें। रात्रि काल में आहार लेने के बाद शेषसायी भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए शयन करें। बताया कि एकादशी के दिन प्रातः स्नान के बाद शालिग्राम की मूर्ति या भगवान विष्णु की धातु या पत्थर की मूर्ति के समक्ष बैठकर उनका ध्यान करते हुए निम्न मन्त्र …उतिष्ठ,उतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रा जगतपते। त्वैसुप्ते जगत्सुप्तम जाग्रिते त्वै जाग्रितं जगत। मन्त्र पढ़ते हुए मूर्ति के समक्ष घण्टा व शंख की ध्वनि कर भगवान को जगाने की मुद्रा करें। कारण यह कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर का वध कर के शयन किया था।
पुनः कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागृत हुए थे। भगवान विष्णु को जल से स्नान कराकर पञ्चामृत स्नान कराकर पीत चन्दन, गंधाक्षत ( अक्षत के जगह सफ़ेद तिल का प्रयोग करें ), पुष्प, धूप, दीप आदि से षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन कर उन्हें वस्त्रादि अलंकार से विभूषित करें। मिष्ठान या तुलसी पत्र युक्त पञ्चामृत का भोग लगावें व अपने प्रसाद ग्रहण करें। यथा संभव ॐ नमो नारायणाय मन्त्र का जप भी करें। सायं काल फलाहार करें। रात्रि जागरण का भी विधान है, जो अपने सामर्थानुसार करें। उस दिन अपनी चित्त वृत्ति को सांसारिक विषयों से हटाकर भगवान का कीर्तन करें। तीसरे दिन किसी ब्राह्मण या विष्णु भक्त को पारणा कराने के बाद स्वयं भी पारणा करें। पारणा समय प्रातः 10 बजे के पूर्व करें।
सायं काल भोजन आदि करके हरि का ध्यान करते हुए शयन करें। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को लेने के लिए भगवान विष्णु के पार्षद स्वयं आते हैं। यमराज के दूत उनका स्पर्श नहीं कर सकते है। उस व्यक्ति को भगवान मोक्ष प्रदान करते हैं। इहलौकिक, सुख भी देते है। मानसिक व आर्थिक कष्ट दूर होता है तथा रोगों का शमन होता है। अतः इस व्रत को आठ वर्ष से लेकर अस्सी वर्ष तक के स्त्री व पुरुष को करना चाहिए।