Jyotish Upay: भूत-प्रेत और डायन ने जीना कर दिया है मुश्किल, तो निजात पाने हेतु रोजाना करें मातंगी कवच का पाठ

Jyotish Upay: भूत-प्रेत और डायन ने जीना कर दिया है मुश्किल, तो निजात पाने हेतु रोजाना करें मातंगी कवच का पाठ

June 21, 2023 Off By NN Express

Jyotish Upay: हर वर्ष आषाढ़ महीने में गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान जगत जननी मां दुर्गा के दस महाविद्याओं की पूजा-उपासना और साधना की जाती है। ये दस महाविद्याएं मां काली, मां तारा, मां छिन्नमस्ता, मां बगलामुखी, मां त्रिपुरी, मां भुवनेश्वरी, मां भैरवी, मां धूमावती, मां मातंगी और मां कमला हैं। धार्मिक मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि भी प्राप्त होती है। अतः साधक गुप्त तरीके से मां की पूजा-भक्ति करते हैं। गुप्त नवरात्रि के दौरान विशेष उपाय किए जाते हैं। इन उपायों को करने से प्रेत बाधा दूर हो जाती है। अगर आप भी बुरी शक्तियों से परेशान हैं, तो रोजाना आरती के समय मातंगी कवच का पाठ करें। इस कवच के पाठ से बुरी बला टल जाती है। आइए, मातंगी कवच का पाठ करें-

मां मातंगी कवच

ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।

तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ॥

पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।

त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ॥

ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।

महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ॥

अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।

ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ॥

रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।

नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ॥

महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।

लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ॥

चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।

स-विसर्ग महा-देवि । हृदयं पातु सर्वदा ॥

नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।

उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ॥

उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।

भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ॥

जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।

विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ॥

नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।

ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ॥

रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।

ऊर्घ्वं पातु महा-देवि । देवानां हित-कारिणी ॥

पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।

प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ॥

मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।

सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ॥

इति ते कथितं देवि । गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।

त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ॥

यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं ।

परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ॥

गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।

ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ॥

नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ॥

ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः ।

तं दृष्ट्वा साधकं देवि । लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ॥

कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।

राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ॥

सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।

इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ॥

झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।

गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ॥