सावधान : आपके मक्का पर हमला कर सकता है फॉल आर्मी
September 30, 2022बेगूसराय, 30 सितम्बर । बिहार कृषि प्रबंधन एवं प्रसार प्रशिक्षण संस्थान बामेती ने फसलों के लिए जानलेवा और किसानों के दुश्मन फॉल आर्मीवॉर्म कीड़ा से बचाव के लिए जागरूकता अभियान शुरू कर दिया है। इसके लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर (भागलपुर) में फॉल आर्मीवर्म से मक्का के बचाव विषय पर दो दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया है।
जिसमें मक्का उत्पादक जिला बेगूसराय, भागलपुर, नालंदा, गया और भोजपुर से दो-दो किसान सलाहकार, एक-एक कृषि समन्वयक, एक-एक प्रखंड तकनीकी प्रबंधक और दो-दो सहायक तकनीकी प्रबंधक सहित 30 कृषि कर्मियों को शामिल किया गया है। प्रशिक्षण से लौटे छौड़ाही प्रखंड स्थित एकंबा पंचायत के किसान सलाहकार अनीश कुमार ने बताया कि फॉल आर्मीवर्म के खतरा और इससे बचाव पाने के उपाय बताए गए हैं, अब किसानों को इस संबंध में जागरूक किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि फॉल आर्मीवॉर्म पतंगों की प्रजातियों में से एक है, इसे एक कीट के रूप में माना जाता है और यह विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुंचाता है। आर्मीवर्म का प्रकोप आमतौर पर गर्मियों के शुरुआत में होता है। लेकिन मक्का का फसल जो रबी सीजन में ज्यादातर लगता है, उस पर आरंभिक दिनों में बहुत बुरा प्रभाव होता है, इसलिए अभी सतर्कता बहुत जरूरी है। यह कीड़ा टिड्डियों की तरह झुंड बनाकर फसल को चट कर जाते हैं।
फॉल आर्मीवर्म फसलों को खराब करने वाला बहुभक्षी कीडा है, जो तंबाकू की इल्लियों की प्रजाति में शामिल है। यह कीड़े टिड्डियों की तरह खाने की तलाश में एक सौ किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर करते हैं। कीड़े खेतों में खड़ी मक्का के फसलों की पत्तियों और भुट्टों को ढंकने वाले खोल पर घर बनाते हैं और उन्हें खुरचकर खा जाते हैं। वैसे तो ये सिर्फ 30-35 दिनों तक ही जीते हैं, लेकिन एक ही रात में फसलों को नुकसान पहुंचाने की ताकत भी रखते हैं, खासकर मादा आर्मीवर्म फसलों में अंडे देकर समस्या को और बढ़ा देती हैं।
अनीश ने बताया कि फॉल आर्मीवर्म का सबसे पहला आतंक अमेरिका में देखा गया, जिसके बाद करीब 44 अफ्रीकी देशों में इसके प्रकोप ने काफी नुकसान पहुंचाया है। भारत में सबसे पहले इस कीड़े को 2018 में कर्नाटक के शिवमोंगा में देखा गया। जिसके बाद बेंगलुरू, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार की फसलों पर भी यह मंडराने लगे हैं तथा अपने जीवन काल में करीब एक हजार अंडे देकर एक सौ किलोमीटर तक उड़ान भरकर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इससे बचाव के लिए उचित कीट नियंत्रण करना बेहद जरूरी है, ताकि यह दूसरी फसलों पर नहीं फैल पाएं। इसके अलावा जिन खेतों में फॉल आर्मीवर्म नहीं पहुंचे हैं, वहां पहले से ही सावधानियां बरतकर संकट से निपटा जा सकता है। इस प्रकार के कीड़ों के प्रकोप से निजात पाने के लिए खेतों में जैविक कीट नियंत्रण करना फायदेमंद रहता है। जैविक कीट नियंत्रण के लिए खेत में नीम से बने कीटनाशक का छिड़काव करें। खेतों में समय-समय पर निगरानी करते रहें तथा फसल में कीड़ा दिखने पर विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार कीटनाशकों का छिड़काव करें।
फसल में इस कीड़े का अंडे दिखते ही उन्हें नष्ट कर दें और कीटनाशक का छिड़काव करें। कीड़ों की बढ़त को रोकने के लिए पहले से ही एक एकड़ खेत में एक सौ किलोग्राम नीम की खल्ली मिलाएं। फॉल आर्मीवर्म को नष्ट करने के लिये एक एकड़ खेत में 40 ग्राम एमामेक्टिन बेंजोएट पांच एस.जी. का छिड़काव करें। किसान चाहें तो सुविधा के अनुसार एक सौ ग्राम फ्लूबेंडामाइड 20 डबल्यूजी या 70 मिलीलीटर स्पिनोसेड 45 ई.सी. को भी फसल पर छिड़क सकते हैं। एक एकड़ खेत में चार-छह फेरोमन ट्रेप लगाकर भी इस कीड़े के प्रकोप को कम किया जा सकता है।
फॉल आर्मीवर्म ज्यादातर रात में फसल को नुकसान पहुंचाते हैं और सुबह होते ही मक्का के गभ्भे में छुप जाते हैं। किसान चाहें तो रेत और राख मिलाकर मक्का के गभ्भे में भर दें, जिससे कीड़ा बिना रासायनिक दवा के छिड़काव के मर जाते हैं। अगर इसका समय पर प्रबंधन नहीं किया जाए तो फॉल आर्मीवर्म मक्के की पैदावार को 50 प्रतिशत तक घटा सकता है। फॉल आर्मीवर्म फसल के किसी भी चरण में पौधे के सभी हिस्सों पर हमला करता है। क्षति बहुत तेजी से होती है और यह अपरिवर्तनीय बन जाती है।
फसल की प्रारंभिक अवस्था में यह बढ़ते हुए छोटे पौधों को नुकसान पहुंचाता है। इल्लियां पत्तियों को अपना भोजन बनाती हैं, जिससे उपज प्रभावित होती है। फॉल आर्मीवॉर्म हरे, गुलाबी, भूरे या काले रंग के होते हैं, इनकी एक पहचान है कि आंखों के बीच सफेद रंग का अंग्रेजी के उल्टे वाय अक्षर जैसा पैटर्न बना होता है।