सख्ती से ही होगा नक्सलियों का सफाया….
May 1, 2024छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से नक्सवाद गंभीर समस्या बना रहा है।क्योंकि इससे निपटने के लिए जिस सख्ती की जरूरत थी, वह सख्ती दिखाने से राज्य सरकारें हिचकती थीं।नक्सलवाद समस्या के समाधान के लिए साफ्ट तरीके काम मेें लाए जाते थे, उनको बात करने के लिए बुलाया जाता था, यह दिखाने की कोशिश ज्यादा की जाती थी कि देखो हम सख्ती से साथ नरमी भी बरत रहे हैं। नक्सलवाद के खिलाफ कम सख्ती व ज्यादा नरमी की वजह से जिस समस्या का समाधान बरसों पहले हो जाना था उसका समाधान आज तक नहीं हो सका है।
पहले की सरकारों के समाधान के तरीकों के कारण बस्तर में एक इलाका नक्सलियों का था, जो उनके लिए सुरक्षित था, वहां पुलिस व सुरक्षा बल के जवानों को भेजा नहीं जाता था।यह माना जाता था कि इस इलाके में सुरक्षा बलों को भेजे जाने पर उन पर हमला हो सकता है, वे मारे जा सकते हैं।माना तो जाता था कि जनहानि से बचने के लिए यह नीति अपनाई जाती थी, इसका परिणाम क्या हुआ कुछ इलाकों में नक्सली अपना राज चलाते रहे। कुछ इलाकों में सरकार का राज चलता था।
नक्सलियों के सफाए के लिए गंभीरता से प्रयास तो अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद शुरु हुए। इसकी शुरुआत को अमित शाह ने भूपेश बघेल के समय ही कर दी थी।अमित शाह ने अफसरों से बात कर, उनको विश्वास में लेकर इस योजना पर काम किया कि नक्सलियों का सफाया कैसे हो सकता है। इसके लिए जरूरी था कि जिन इलाकों में नक्सलियों का प्रभाव है, आतंंक है, दहशत है,उसे कम किया जाए। इसके लिए पूरे बस्तर में कैंप खोले गए। कैंप खुलते गए और नक्सलियों का प्रभाव कम होता गया। वह कमजोर होते गए। पूरे बस्तर में कैंप खुलने से उनके लिए कोई इलाका सुरक्षित नहीं रहा। साय सरकार के आते तक इतने कैंप खुल गए थे कि अब सुरक्षा बल के जवान कहीं पर भी नक्सलियों पर योजना पर हमला कर सकते थे।
पहले नक्सलियों की सूचना तक सुरक्षा बलों को नहीं मिलती थी, अब नक्सलियों के होने की पुख्ता सूचना मिलती है और योजना बनाकर उन पर उनके ही सुरक्षित इलाकों में हमला किया जाता है और हर बार नक्सलियों को भागने नहीं दिया जाता, मार गिराया जाता है, पहले नक्सली लाश लेकर भाग जाते थे, अब जवानों का हमला इतना तगड़ा रहता है कि वह लाश उठाकर नहीं ले जा पाते हैं। अब तक तीन बड़े हमले साय सरकार की बड़ी सफलता है, इससे बस्तर सहित राज्य के लोगों में उम्मीद बंधी है कि नक्सलियों का सफाया तो इसी तरह सख्ती से हो सकता है।
साय सरकार के समय एक माह में ९७ नक्सली मारे जा चुक हैं। दो अप्रैल को बीजापुर क्षेत्र में पहली बार नौ नक्सली मारे गए थे। इसके बाद १६ अप्रैल को कांकेर क्षेत्र में अब तक सबसे ज्यादा २९ नक्सली मारे गए थे। इसके बाद ३० अप्रैल को नारायणपुर क्षेत्र में १० नक्सली मारे गए हैं। पहले एक साल में इतने नक्सली नहीं मारे जाते थे, अब एक बार में जवान इतने नक्सली मार रहे है तो सरकार की नीति व नीयत के कारण संभव हो रहा है वरना यही जवान थे, जिन पर नक्सली जब चाहे जहां चाहे हमला कर उनको मार देते थे। हमेशा सुरक्षा बलों के जवानों पर नक्सली ही भारी पड़ते थे, क्योंकि नक्सलियों के सफाए की तब न नीति थी और नीयत थी, आज दोनों है और जवान वह काम कर पा रहे हैं जो वह पहले नहीं कर पाते थे।
इसका प्रभाव यह हुआ है कि अब नक्सलियों का सरेंडर करना बढ़ गया है। एक दो दिन पहले 23 नक्सलियों ने सरेंंडर किया था, कल 16 नक्सलियों ने सरेंडर किया है। साय सरकार के समय इसी तरह नक्सली मारे जाते रहे और सरेंडर करते रहे तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि बस्तर जल्द ही नक्सल मुक्त हो जाएगा।