मानवयुक्त गगनयान के लिए क्रायोजेनिक इंजन तैयार
March 1, 2024भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अभियान गगनयान की चरणबद्ध तैयारी में क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 को उड़ान भरने के लिए स्वदेषी तकनीक से विकसित कर लिया है। चूंकि गगनयान भारत का पहला ऐसा अंतरिक्ष अभियान होगा, जो मीन मानवों को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा। इस दृश्टि से इंजन में सुधार में मानव सुरक्षा रेटिंग प्रक्रिया को सफल मान लिया गया है। इस इंजन को मानव मिषन के योग्य बनाने की दृश्टि से चार इंजनों को अलग-अलग स्थितियों में 39 हाॅट फायरिंग टेस्ट से गुजरना पड़ा है। यह प्रक्रिया 8 हजार 810 सेकेंण्ड तक चली। इस दौरान इन इंजनों को 6 हजार 350 सेकेंण्ड तक जांच से गुजरना पड़ा। यह इंजन मानव रेटेड एलवीएम-3 प्रक्षेपण वाहन के ऊपरी चरण को षक्ति प्रदान करेगा। ये सब तैयारियां भेजे गए इंसान को सुरक्षित रूप में वापस की जा रही हैं। यही इंजन अंतरिक्ष की उड़ानों से लेकर उपग्रहों के प्रक्षेपण एवं मिसाइल छोड़ने में काम आता है।
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दरअसल हमारे वैज्ञानिकों ने अनेक विपरीत परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद इस क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धियां हासिल की है। अन्यथा एक समय ऐसा भी था, जब अमेरिका के दबाव में रूस ने क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था। असल में किसी भी प्रक्षेपण यान का यही इंजन वह अश्व-शक्ति है, जो भारी वजन वाले उपग्रहों व अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में पहुंचाने का काम करती है। दरअसल भारत ने शुरुआत में रूस से इंजन खरीदने का अनुबंध किया था। लेकिन 1990 के दशक के आरंभ में अमेरिका ने मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का हवाला देते हुए इसमें बाधा उत्पन्न कर दी थी। इसका असर यह हुआ कि रूस ने तकनीक तो नहीं दी लेकिन छह क्रायोजेनिक इंजन जरूर भारत को शुल्क लेकर भेज दिए। कालांतर में अमेरिका के पूर्व राश्ट्रपति बराक ओबामा की मदद से भारत को एमटीसीआर क्लब की सदस्यता भी मिल गई लेकिन इसके पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों के कठोर परिश्रम और दृढ़ इच्छा षक्ति के चलते स्वदेषी तकनीक के बूते चरणबद्ध रूपों में इंजन को विकसित कर दिया।
मानव मिषन की इस उड़ान के पहले चरण का सफल प्रक्षेपण इसरो पहले ही कर चुका है। देष के महत्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान से जुड़े पैलोड के साथ उड़ान भरने वाले परीक्षण यान के असफल होने की स्थिति में क्रू माॅड्यूल अर्थात जिसमें अंतरिक्ष यात्री सवार होंगे को बाहरी अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद वापस सुरक्षित लाने के लिए ‘क्रू एस्केप सिस्टम‘ यानी चालक दल बचाव प्रणाली (सीईएस) का सफल परीक्षण कर इसरो विष्व कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। इस बचाव प्रणाली की जरूरत इसलिए थी, क्योंकि यान के असफल होने पर कई वैज्ञानिक प्राण गंवा चुके हैं। इस परीक्षण के अंतर्गत क्रू माॅड्यूल राॅकेट से अलग हो गया और बंगाल की खाड़ी में गिर गया। नौसेना ने भी पुश्टि की थी कि सेना की पूर्वी कमान ने बंगाल की खाड़ी से निकाला और चैन्नई के बंदरगाह पर ले आया। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने मिषन नियंत्रण केंद्र से कहा, ‘मुझे टीवी-डी1 मिषन की सफलता की घोशणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है। क्रू मॉड्यूल वह स्थान है, जहां गगनयान मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में दबावयुक्त पृथ्वी जैसे वातावरण में रखा जाएगा।
14 जनवरी 2024 को गोवा में संपन्न हुए मनोहर पर्रिकर विज्ञान महोत्सव में इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया था कि इस मानव मिशन के लिए ‘पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली‘ (ईसीएलएसएस) अन्य देशों से नहीं मिलने के कारण इसरो इसे स्वयं विकसित करेगा। चूंकि इसरो रॉकेट और उपग्रह की रचना करने में सक्षम हैं। परंतु हमने सोचा था कि इस प्रणाली को किसी दूसरे देश से प्राप्त कर लेंगे। लेकिन दुर्भाग्यवष कोई सक्षम देष हमें यह प्रणाली देने का इच्छुक नहीं है। इसलिए स्वयं विकसित करेंगे। गगनयान की उड़ान को 2025 में भरी जाने की संभावना है। गगनयान परियोजना के तहत इसरो मानव चालक दल को 400 किमी ऊपर पृथ्वी की कक्षा में भेजेगा। बाद में सुरक्षित पृथ्वी पर वापस समुद्र में उनकी लैंडिग कराई जाएगी। अतएव भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो में वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में उनके लिए लक्ष्य भी तय कर दिए हैं कि 2035 में भारत अंतरिक्ष स्टेषन स्थापित हो तथा 2040 में चंद्रमा पर भारतीय नागरिक के कदम पड़ जाएं। इसी मौके पर प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों से षुक्र आर्बिटर मिषन और मंगल लैंडर सहित विभिन्न अंतरग्रहीय मिषन की दिषा में काम करने का आग्रह किया हुआ है।
इस यान में लगभग तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री करीब सात दिन अंतरिक्ष की सैर करेंगे। ‘रोबोट-मानव‘ भी साथ ले जाया जा सकता है। मिषन के लिए 10 हजार करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं। हालांकि अब तक भारतीय या भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं। राकेश षर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं। शर्मा रूस के अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 से अंतरिक्ष गए थे। इनके अलावा भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भी अमेरिकी कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष जा चुकी हैं। हालांकि पूर्व में भारत ने 2022 तक अंतरिक्ष में मानव भेजने की घोषणा की थी। लेकिन इस पर समय रहते क्रियान्वयन नहीं हो पाया। अंतरिक्ष में मानवरहित और मानवचालित दोनों तरह के यान भेजे जाएंगे। पहले चरण में योजना की सफलता को परखने के लिए अलग-अलग समय में दो मानव-विहीन यान अंतरिक्ष की उड़ान भरेंगे। इनकी कामयाबी के बाद मानव-युक्त यान अपनी मंजिल का सफर तय करेगा। यह सावधानी इसलिए बरती जा रही है, क्योंकि अमेरिकी मानव मिशन की असफलता के चलते भारतीय महिला वैज्ञानिक कल्पना चावला की मृत्यु हो गई थी। वे कोलंबिया अंतरिक्ष यान आपदा में मारे गए 7 यात्री दल सदस्यों में से एक थीं।
मानव युक्त गगनयान की कामयाबी के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन की श्रेणी में आ जाएगा। क्योंकि इन्हीं देशों ने अब तक अंतरिक्ष में अपने मानवयुक्त यान भेजने में सफलता पाई है। रूस ने 12 अप्रैल 1961 को रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा था। गागरिन दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री थे। अमेरिका ने 5 मई 1961 को एलन शेपर्ड को अंतरिक्ष में भेजा था। ये अमेरिका से भेजे गए पहले अंतरिक्ष यात्री थे। चीन ने 15 अक्टूबर 2013 को यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजने की कामयाबी हासिल की थी। भारत ने अब अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने की पहल कर दी है।
भारत द्वारा अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले गगनयान का भार 7 टन, ऊंचाई 7 मीटर और करीब 4 मीटर व्यास की गोलाई होगी। ‘गगनयान‘ जीएसएलवी (एमके-3) रॉकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद 16 मिनट में अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच जाएगा। इसे धरती की सतह से 400 किमी की दूरी वाली पृथ्वी कक्षा में स्थापित किया जाएगा। सात दिन तक कक्षा में रहने के बाद गगनयान को अरब-सागर, बंगाल की खाड़ी अथवा जमीन पर उतारा जाएगा। इस संबंध में पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेष षर्मा से भी मदद ली जाएगी। षर्मा ऐसे पहले भारतीय हैं, जिन्होंने अप्रैल 1984 में अंतरिक्ष में गए थे। अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले यात्रियों को ‘व्योम-मानव‘ नाम से पुकारा जाएगा। यह शब्द दुनिया की आदी भाषा संस्कृत से लिया गया है। जिसका पर्याय अंतरिक्ष-यात्री है।
दरसअल अंतरिक्ष में मौजूद ग्रहों पर यानों को भेजने की प्रक्रिया बेहद जटिल और षंकाओं से भरी होती है। यदि अवरोह का कोण जरा भी डिग जाए या फिर गति का संतुलन थोड़ा सा ही लड़खड़ा जाए तो कोई भी अंतरिक्ष-अभियान या तो ध्वस्त हो जाता है या फिर अंतरिक्ष में कहीं भटक जाता है। इसे न तो खोजा जा सकता है और न ही नियंत्रित करके दोबारा लक्ष्य पर लाया जा सकता है। चंद्रयान-2 ऐसी ही विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए लड़खड़ाकर उलट गया था। इसीलिए भारत पहले दो गगनयान-अभियान मानवरहित भेजेगा। भारत ने गगनयान को अंतरिक्ष में भेजने की दृश्टि से श्रीहरिकोटा में जीएसएलवी मार्क-3 को स्थापित करने की तैयारी षुरू की हुई है। इसी मुहिम के अंतर्गत इसरो ने परीक्षण के तौर पर क्रू एस्केप माॅड्यूल का पहला पड़ाव पार कर लिया है। इसे धरती से 2.7 किमी की ऊंचाई पर भेजने के बाद राॅकेट से अलग किया और फिर इसे पैराषूट की मदद से बंगाल की खाड़ी में उतारकर जमीन के निकट लाने में सफलता प्राप्त की।
विज्ञान मामलों के जानकार पल्लव बागला का कहना है कि जो क्रू मॉड्यूल बना है, वह तीन लोगों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता रखता है। इसमें सवार यात्रियों को एक सप्ताह तक भोजन-पानी और हवा देकर जीवित रखा जा सकता है। ऐसी उम्मीद है कि वायु सेना के किसी एक पायलट को अंतरिक्ष यात्रा का अवसर दिया जा सकता है, क्योंकि उनमें अंतरिक्ष में पहुंचकर वापस आने की ज्यादा क्षमता होती है। इस अभियान को स्वदेषी प्रोद्यौगिकी से तैयार किया जा रहा है। औद्योगिक घरानों की मदद से इसरो फ्लाइट्स से जुड़े हार्डवेयर व अन्य उपकरण जुटाएगा। राश्ट्रीय अंतरिक्ष व विज्ञान एजेंसियां और विष्वविद्यालय भी इस अभियान में मदद करेंगे। इनके शिक्षाविद् और प्रयोगशालाओं की भी अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देने में मदद ली जाएगी। इसी क्रम में क्रू मॉड्यूल को जिस पैराशूट से सुरक्षित लैंडिंग कराई गई है, वह डीआरडीओ की आगरा में स्थित प्रयोगशाला एडीआरडीई में बनाया गया है। बहरहाल अंतरिक्ष में भारतीय मानव मिशन के सफल होने के बाद ही चंद्रमा और मंगल पर मानव भेजने का रास्ता खुलेगा। इन पर बस्तियां बसाए जाने की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी। आने वाले वर्शों में अंतरिक्ष पर्यटन के भी बढ़ने की उम्मीद है। इसरो की यह सफलता अंतरिक्ष पर्यटन की पृश्ठभूमि का एक हिस्सा है।