आज के व्रत त्यौहार : पुत्रदा एकादशी
January 21, 2024जाने शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व
इस बार पौष पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी यानी आज मनाई जाएगी. एकादशी तिथि की शुरुआत 20 जनवरी आज शाम 7 बजकर 26 मिनट से शुरू हो गई है और इसका समापन 21 जनवरी यानी आज शाम 7 बजकर 26 मिनट पर होगा। पौष पुत्रदा एकादशी के पारण का मुहूर्त 22 जनवरी को सुबह 7 बजकर 14 मिनट से लेकर 9 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
पौष पुत्रदा एकादशी शुभ योग
इस बार की पौष पुत्रदा एकादशी बेहद खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन द्विपुष्कर योग, शुक्ल योग और रोहिणी नक्षत्र का संयोग बनने जा रहा है।
पौष पुत्रदा एकादशी पूजन विधि
पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले लोगों को व्रत से पहले दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। इसके बाद गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में व्रत रखने वाले बिना जल के रहना चाहिए. यदि व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकती हैं। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
पौष पुत्रदा एकादशी महत्व
पुत्रदा शब्द का अर्थ है पुत्रों का दाता और चूंकि यह एकादशी पौष के हिंदू महीने के दौरान आती है, इसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है । साल में दो पुत्रदा एकादशी आती हैं । पहली पुत्रदा एकादशी पौष मास में और दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण मास में आती है । यह एकादशी मुख्य रूप से उन दंपतियों द्वारा मनाई जाती है जो पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखते हैं । जो भक्त बड़ी श्रद्धा और समर्पण के साथ व्रत करते हैं, भगवान विष्णु भक्तों को सुख, समृद्धि और मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं । दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में, पौष पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ एकादशी, स्वर्गावथिल एकादशी या मुक्तकोटि एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी कथा
किसी समय भद्रावती नगर में राजा सुकेतु का राज्य था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. संतान नहीं होने की वजह से दोनों पति-पत्नी दुखी रहते थे। एक दिन राजा और रानी मंत्री को राजपाठ सौंपकर वन को चले गये। इस दौरान उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है। अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिये और वे उसी दिशा में बढ़ते चलें। साधुओं के पास पहुंचने पर उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व का पता चला। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ही पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व बढऩे लगा। वे दंपती जो नि:संतान हैं उन्हें श्रद्धा पूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।