123 साल पुरानी रामलीला: करीना कपूर के ससुर थे मुरीद, दिया करते थे चंदा, पटौदी परिवार से है खास रिश्‍ता

123 साल पुरानी रामलीला: करीना कपूर के ससुर थे मुरीद, दिया करते थे चंदा, पटौदी परिवार से है खास रिश्‍ता

October 24, 2023 Off By NN Express

Ramleela 2023: गुरुग्राम में आज भी सालों पुरानी पटौदी रामलीला का मंचन किया जाता है. इस रामलीला में रामायण की चौपाई पढ़ी जाती है. खास बात यह है कि इस रामलीला के लिए पटौदी परिवार से चंदा दिया जाता है.


गुरुग्राम. दिल्ली से सटे गुरुग्राम में आज भी सालों पुरानी रामलीला की परंपरा निभाई जा रही है. इसमें गंगा जमुनी तहजीब की झलक दिखाई देती है. 1904 में इस भव्य रामलीला का मंचन शुरू हुआ. इसका इतिहास पटौदी के नवाब मुट्टन मिया से जुड़ा है. इस रामलीला का मंचन बेहद निराले अंदाज में होता है. यहां रामायण की चौपाइयां गाई जाती है. गुरुग्राम के पटौदी में आयोजित होने वाली रामलीला मंचन का इतिहास 123 साल पुराना है. बताया जाता है कि 1904 में नवाब पटौदी के निधन के बाद खाली पड़ी गद्दी के लिए अंग्रेज़ों ने आवेदन मंगवाए. इसी नवाबी के लिए पटौदी के मुट्टन मियां ने भी आवेदन किया था. जब मुट्टन मियां अपने पुरोहित के साथ दिल्ली के लालकिला पहुंचे थे तो लालकिला मैदान में रामलीला का मंचन हो रहा था.
मुट्टन मियां ने अपने पुरोहित से पूछा कि यह क्या हो रहा है? तो पूतोहित ने उन्हें रामलीला के मंचन और उसके इतिहास के साथ महत्व के बारे में बताया. फिर क्या था, मुट्टन मिया ने मन ही मन भगवान श्री राम से अरदास की कि अगर नवाब बना तो पटौदी में रामलीला का भव्य मंचन मैं भी करवाऊंगा. फिर अंग्रेजों ने मुट्टन मिया को पटौदी का नवाब बना दिया. फिर नवाब पटौदी मुट्टन मिया ने आते ही पटौदी में रामलीला का मंचन शुरू करवा दिया और तभी से पटौदी के इसी ग्राउंड में रामलीला का मंचन दिन में होता आ रहा है.

पढ़ी जाती है रामायण की चौपाइयां
यहां रामायण की चौपाइयों से रामलीला का मंचन किया जाता है. अक्सर कई शहरों में रामलीला में फिल्मी धुन बजाई जाती है, लेकिन पटौदी की इस रामलीला में आज भी रामायण की चौपाइयों से भगवान श्री राम का गुणगान और मंचन किया जा रहा है. रामलीला के आयोजकों का कहना है कि इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि रामलीला के दौरान धर्म के आदर्शों का पालन किया जाए. उसी रूप में रामलीला का मंचन किया जाए जिससे समाज में परिवारों में रामलीला के महत्व को समझाया जा सके.

आयोजकों की मानें तो रामलीला में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग अलग-अकग तरीको से रामलीला मंचन में सहयोग करते हैं. बताया जाता है कि सैफ अली खान के पिता नवाब मंसूर अली खान पटौदी इस ऐतिहासिक रामलीला मंचन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे. रामलीला के चंदे से लेकर कलाकारों को सम्मानित करना, उनका हौसला अफजाई करना नवाब की दिनचर्या में शामिल था. इतना ही नहीं सैफ अली खान परिवार से रामलीला के लिए चंदा भी भेजा जाता है.