छात्रा ने फांसी लगाकर की आत्महत्या….
August 13, 2023अंबिकापुर,13 अगस्त । जिले के DAV पब्लिक स्कूल विश्रामपुर में पढ़ने वाली 14 वर्षीय छात्रा ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। छात्रा सिकलिन से पीड़ित थी। सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और शव को फांसी के फंदे से उतरवाकर पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवाया। मामला विश्रामपुर थाना क्षेत्र का है।
जानकारी के मुताबिक, छात्रा नव्या सोनवानी (14 वर्ष) सिकलिन बीमारी से पीड़ित थी। वो अपने परिवार के साथ SECL विश्रामपुर की चोपड़ा कॉलोनी स्कूल लाइन में रहती थी और DAV विश्रामपुर में कक्षा 9वीं में पढ़ती थी। 3 दिन पहले तबियत बिगड़ने पर उसे इलाज के लिए परिजन अस्पताल ले गए थे, जिसमें थायरॉइड की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई थी। इलाज के बाद परिजन नव्या को लेकर घर वापस आ गए थे।
छात्रा की मां विश्रामपुर थाने में आरक्षक है। उनकी स्वतंत्रता दिवस परेड रिहर्सल में ड्यूटी लगी है। वे शनिवार की सुबह 7 बजे परेड इसके लिए सूरजपुर चली गई थीं। इस दौरान घर में नव्या अकेली थी। उसने पंखे की रॉड में अपने दुपट्टे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मां जब शनिवार रात ड्यूटी पर से वापस लौटी, तो उसने बेटी को फांसी के फंदे पर लटका हुआ पाया। इसके बाद उन्होंने पुलिस को घटना की सूचना दी।
सुसाइड नोट बरामद
जानकारी मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को फांसी के फंदे से उतरवाकर पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवाया। घटनास्थल पर सीएसपी एसएस पैकरा, विश्रामपुर थाना प्रभारी सीपी तिवारी, जयनगर थाना प्रभारी सरफराज फिरदौसी भी मौजूद रहे। शव के पास से सुसाइड नोट भी मिला है, जिसमें उसने अपनी मौत का जिम्मेदार खुद को ही बताया है। पुलिस ने कहा कि बीमारी से परेशान होकर छात्रा ने आत्महत्या की है।
सिकलिन या सिकलसेल क्या है?
सिकल सेल एनीमिया खून से जुड़ी बीमारी है। इसमें शरीर में पाई जाने वाली लाल रक्त कणिकाएं गोलाकार होती हैं, लेकिन बाद में वह हंसिए की तरह बन जाती हैं। वह धमनियों में अवरोध पैदा करती हैं। इससे शरीर में हीमोग्लोबिन और खून की कमी होने लगती है। यह एक आनुवांशिक बीमारी है। इससे पीड़ित व्यक्तियों में रेड ब्लड सेल्स बनने बंद हो जाते हैं। शरीर में खून की कमी हो जाती है। बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। रंग पीला पड़ जाता है।
सिकलसेल का इलाज पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन दवाई और खानपान में सावधानी बरत कर इस बीमारी के साथ भी रोगी जी सकता है। सिकलसेल से पीड़ित बच्चे 6 माह की उम्र में ही कई बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं। उनकी मांसपेशियों और हड्डियों में दर्द होने लगता है। बच्चों की प्लीहा तिल्ली का आकार बढ़ जाता है। ब्लड टेस्ट से बीमारी का पता चलता है।