Success Story: पिता-पुत्र की जोड़ी ने कैसे प्लास्टिक कचरे से कपड़े तैयार कर खड़ी की 100 करोड़ की कंपनी
June 27, 2023तमिलनाडु स्थित कंपनी श्री रेंगा पॉलिमर और इकोलाइन को पिता-पुत्र की जोड़ी चलाती है. इस कंपनी ने प्लास्टिक के कचरें को इकठ्ठा कर उससे कपड़े बनाने का काम शुरू किया और धीरे-धीरे इनका ये फॉर्मूला सुपरहिट हो गया. इनकी कंपनी फेंकी गई पीईटी (polyethylene terephthalate) बोतलों को रिसाइकल करके उनसे जैकेट, टी-शर्ट, ब्लेजर सहित कई कपड़ों का प्रोडक्शन कर रही है.
आज हम आपको ब्रांड स्टोरी में बताएंगे कि कैसे के शंकर और उनके बेटे सेंथिल शंकर ने प्लास्टिक से कचरे से इको फ्रेंडली गारमेंट बनाकर पूरी दुनिया को चौंका दिया. लेकिन जिस रास्ते वो चले थे वो राह इतनी आसान नहीं थी. इसके लिए पिता-पुत्र को काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा.
विदेश से लौटकर भारत में के शंकर ने शुरू की कंपनी
के शंकर की बात करें तो उन्हें विदेशों में तीन दशकों का समय बिताने के बाद भारत लौटने का फैसला लिया. भारत लौटने के बाद उन्होंने साल 2008 में श्री रेंगा पॉलिमर नाम की कंपनी की स्थापना की. ये कंपनी मौजूदा समय में भारत में पीईटी बोतल रिसाइक्लिंग और टिकाऊ कपडों के मामले में अग्रणी हैं. इस कंपनी का सालाना कारोबार 100 करोड़ रूपये है. कंपनी अपने प्रोडेक्ट्स लाइनों को और मजबूत बनाने के लिए जर्मन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती है.
पीएम मोदी ने पहनी कंपनी की जैकेट
इकोलाइन क्लोदिंग तब सुर्खियों में आई जब इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कंपनी की बनाई हुई जैकेट पहनी. इसके बाद पीएम मोदी ने हिरोशिमा में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन में भी इकोलाइन की जैकेट पहनी. इसे लेकर सेंथिल ने एक न्यूज वेबसाइट से बातचीत की थी.
इसमें उन्होंने कहा कि हमारे पास एक गंदी प्लास्टिक की बोतल को एक सुंदर परिधान में बदलने का सपना था, जिसे हमने पूरा किया. प्रधानमंत्री को भी ये बात अच्छी लगी. हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि पीएम मोदी हमारा बनाया प्रोडेक्ट पहनेंगे. उनकी वजह से करूर जैसी छोटी जगह भी देश में स्पॉटलाइट बन गई.
टी-शर्ट, जैकेट बनाने में लगती हैं कितनी बोतलें?
एक टी-शर्ट बनाने के लिए 8 पीईटी बोतलें लगती हैं. वहीं एक जैकेट बनाने में 20 और ब्लेजर बनाने में 30 पीईटी बोतलें लगती हैं, अपने होम टेक्सटाइल उद्योगों के लिए विख्यात शहर करूर में श्री रेंगा पॉलिमर कंपनी का प्रोडक्शन हाउस है. के शंकर के बेटे सेंथिल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता के सामने तमिलनाडु के अलग-अलग क्षेत्रों में कचरा इकठ्ठा करने की बड़ी समस्या था.
इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. उनके पिता चाहते थे कि मैं इंजीनियरिंग डिग्री पूरी करने के बाद विदेश में नौकरी करूं, लेकिन वो अपने पिता से प्रभावित थे. इसी वजह से कुछ अलग करने के लिए वो अपने पिता के बिजनेस में शामिल हो गए.
कैसी परेशानियों का करना पड़ा सामना?
सेंथिल ने बताया कि कोई भी निवेशक उनके बिजनेस में पैसा नहीं लगाना चाहता था क्योंकि उनके पास कोई स्थिर रेवन्यू मॉडल नहीं था. हमने काफी परेशानियों का सामना किया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरकार उनके बिजनेस ने रफ्तार पकड़ी. सेंथिल का मानना है कि साल 2030 तक इकोलाइन क्लोथिंग, कंपनी द्वारा बनाए जा रहे सभी रेशों को कपड़ों में बदल देगी और हम एक अलग कंपनी होंगे.