‘मैं जिंदा हूं, मरा नहीं हूं…पानी पिला दो’, शवों के ढेर में पड़े पीड़ित ने पकड़ा रेस्क्यू करने वाले का पैर
June 8, 2023ओडिशा के बालासोर जिले के बहानगा ट्रेन हादसे को लेकर कई दर्दनाक कहानियां सामने आ रही हैं, जिसमें किसी के पूरे परिवारों का सफाया हो गया है और कुछ ने अपने प्रियजनों को खो दिया है। कई मासूम बच्चे अनाथ हो गए हैं। ऐसे लोग भी हैं जो दुर्घटना में शामिल हुए हैं और गंभीर रूप से घायल हुए हैं, उनके साथ अभी भी उनके जीवन का अनमोल उपहार है।
क्या है पूरा मामला?
एक रिपोर्ट के अनुसार रेस्क्यू वर्कर्स स्कूल के कमरे में गए और लाशों को हटाने लगे थे। इसी दैरान लाशों के ढेर के बीच एक रेस्क्यू वर्कर चल रहा था कि उसे लगा कि किसी ने उसका पैर पकड़ लिया है।
इसके बाद उसे धीमी आवाज़ में सुनाई दिया, ‘मैं ज़िन्दा हूं, मरा नहीं, थोड़ा पानी पिला दो भाई। पहले तो रेस्क्यू वर्कर सिहर गया, उसे यकीन नहीं हुआ, लेकिन फिर उसने हिम्मत कर उस तरफ देखा।
35 साल का रॉबिन लाशों के बीच पड़ा था। वो हरकत करने की कोशिश कर रहा था, खुद को बचाने की मिन्नतें कर रहा था। रेस्क्यू वर्कर्स ने उसकी जान बचाई और तुरंत उसे अस्पताल भेजा ।
पैर गंवा दिए लेकिन ज़िन्दा बच गया रॉबिन
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना ज़िले का रॉबिन नैया उस दुर्घटना में ज़िन्दा बच गया जिसमें 288 मासूम ज़िन्दियां तबाह हो गई । रॉबिन ने अपनी दोनों टांगें गंवा दी।
रॉबिन द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक वो चरनाखेली गांव का रहने वाला है और 7 लोगों के साथ सफ़र कर रहा था। कोरोमंडल एक्स्प्रेस से सभी काम की तलाश में आंध्र प्रदेश जा रहे थे।
रॉबिन की हालत गंभीर है और मेदनीपूर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में उसका इलाज चल रहा है। रॉबिन के बाकी दोस्त अभी भी लापता हैं।
2010 में भी हुई थी ट्रेन दुर्घटना
रॉबिन नैया के अंकल मानबेंद्र सरदार ने बताया कि पहले भी इस परिवार का एक सदस्य ट्रेन दुर्घटना का शिकार हुआ था। मानबेंद्र ने बताया कि उसका बड़ा भाई ज्ञानेश्वरी एक्स्प्रेस में सवार था, ये ट्रेन 2010 में दुर्घटना का शिकार हुई थी।
ट्रेन पटरी से उतर गई थी और दूसरी तरफ से आ रही मालगाड़ी ने टक्कर मार दी थी। इस दुर्घटना में 148 लोग मारे गए थे, लेकिन मानबेंद्र के भाई की जान बच गई थी।
गौरतलब है कि इसी तरह के एक अन्य मामले में 24 साल का विश्वजीत मलिक भी है, जो मृत घोषित कर मुर्दाघर भेजे जाने के बाद भी बच गया।
यहां उनके पिता हिलाराम थे, जिन्होंने देखा कि विश्वजीत अभी भी जीवित है, जिसने कड़ी मसक्कत के बाद अपने बेटे को वहां से निकाल कर प्रारंभिक उपचार के बाद अपने बेटे का इलाज पश्चिम बंगाल के एक अस्पताल में करवा रहे है।