DHAMTARI : देमार की मां महामाया की महिमा है अपरंपार, लोगों की मनोकामना करती है पूर्ण
October 2, 2022धमतरी, 02 अक्टूबर । ग्राम देमार के मां महामाया की महिमा अपंरपार है, जो भी भक्त मनोकामना लेकर यहां आता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। चैत्र व क्वांर नवरात्र में यहा मनोकामना जोत प्रज्जवलित किए जाते हैं। यहां साल भर अलग-अलग दिन- तिथियों में भजन कीर्तन व अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं।
मंदिर का इतिहास
पहले धमतरी से आठ किलोमीटर दूर ग्राम देमार एक छोटा सा गांव था, जहां पर मां महामाया माता विराजमान है। वहां एक खुला मैदान था मवेशी घास चरने के लिए आते थे। उसी मैदान मे एक डबरी नुमा एक गड्ढा था जहां पर मवेशी बैठा करते थे। उसी गड्ढ़े में टापू नूमा एक पत्थर था जिसे सभी जानते थे, लेकिन किसी को पता नहीं था की यही पत्थर एक दिन देवी का रूप ले लेगी। गांव के एक मंगर परिवार में जलहल नाम के व्यक्ति रहते थे जिन्हें वही छोटा सा पत्थर स्वप्न में आकर जलहल को बताया कि मैं कोई साधारण पत्थर नही हूं, मै महामाया देवी हूं मेरा मान सम्मान होना चाहिए। ग्रामीण ने गांव के कुछ प्रमुख लोगों के पास अपनी स्वप्न की बात बताई। गांव में बैठक रख कर उस पत्थर को गड्ढे से बाहर निकालने की योजना बनाई गई। पानी को निकाला गया कीचड़ को हटाया गया, फिर पत्थर को पूजा पाठ कर खुदाई करना शुरू किया गया। 15 फीट गहरा हो गया फिर भी माता की अंतिम छोर का पता नहीं चला, फिर गड्ढे में सिपेज के पानी से भरने लगा। भारी भरकम पत्थर को देखकर लोग डरने लगे। फिर क्षमा प्रार्थना कर उस गड्ढे को पाट दिया गया। फिर भी बाद में धीरे-धीरे पत्थर बढ़ने लगा जमीन से सवा तीन फीट ऊंचा होकर स्थिर हो गया। डबरी को पाट कर मिट्टी की दीवार बनाई गई। इसके उपर छज्जा बनाया गया। मंदिर का स्वरूप दिया गया। इस प्रकार माता की पहचान हुई।
मंदिर की विशेषता
पहले माता जी का रूप का कोई आकार नहीं था केवल बंदन से रंगा हुआ था। स्व. तिलक रामटेके के सुझाव व कहने पर स्व. पंडित सुदामा प्रसाद उपाध्याय से सलाह लेकर पश्चिममुखी माता के नाक, कान, आंख व मुख एवं लाल वस्त्र लाल चुनरी सिर मे चांदी का मुकुट धारण कर माता का भव्यस्वरूप प्रदान किया। वृदाबन आश्रम से स्वामी दयानंद महाराज ने देवी भागवत का आयोजन तीन वर्ष तक किया। समस्त ग्रामवासियों को देवी के बारे मे अनन्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। और नौ दिन का भंडारा भी किया गया, इस प्रकार समस्त ग्रामवासी को देवी महिमा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
समस्त ग्रामवासी हर तीन साल में महामाया देवी माता के मंदिर में जोत जंवारा बोया करते थे। सभी ग्रामवासी नौ दिन तक अपने श्रध्दा भक्ति, सर्मपण भाव से सेवा करते थे। इसी प्रकार समय का चक्र बीतता गया। कुछ पीढ़ी बीत जाने के बाद राष्ट्रीय सिविल सेवा संघ सेवा दल ने पक्की दीवार बनाई। माता का यह चमत्कार सिर्फ गांव तक ही सीमित था। समय का चक्र बीतते गया कुछ समय कुछ पीढ़ी बीतने के बाद माता जी के प्रेरणा से ग्राम के सामान्य व्यक्ति स्व. तिलकराम रामटेके के मन मे माता जी की भक्ति जागृत हुई। उन्होंने समूह व समिति का गठन किया और मनोकामना जोत जलाने कि शुरूआत की।
खिलावन प्रसाद शर्मा, पुजारी, मां महामाया मंदिर देमार
श्रध्दालु दिनेश कुमार साहू ने बताया कि, मां महामाया की नियमित पूजा-अर्चना करने से सुख की प्राप्ति होती है। मां सभी की मनोकामना पूर्ण करती है। गांव ही नहीं अन्य जिलों से भक्त यहां मां से मनोकामना लेकर आते हैं।