Indus Public School, Dipka के प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने दिए उत्कृष्ट पैरेंटिंग के बहूमूल्य सुझाव
January 9, 2023कोरबा/दीपका,09 जनवरी I अगर विद्यालय में अभिभावकों के आने पर शिक्षक साथी उनके साथ अगर सिर्फ शिकायतें साझा करें, तो शायद वे दोबारा स्कूल आने से कतराएंगे। यही बात शिक्षकों के संदर्भ में भी लागू होती है जिनके बच्चे अन्य विद्यालयों में पढ़ते हैं। वे भी सकारात्मक व्यवहार की उम्मीद करते हैं। इसके साथ ही व्यावहारिक समस्याओं को व्यावहारिक तरीके से हल करना जरूरी होता है। ऐसे में समुदाय का सहयोग मिलना बहुत सारी समस्याओं के समाधान में मदद भी करता है। बच्चों के विकास में अभिभावक की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। इस भूमिका के निर्वाह में स्कूलों के साथ उनका अच्छा तालमेल और समन्वय वाला रिश्ता होना जरूरी है।
ऐसा करने के लिए ऐसे फोरम की जरूरत है जहाँ शिक्षक, अभिभावक और बच्चे एक साथ मौजूद हों। विद्यालय एक ऐसी जगह है जहाँ हर समुदाय से बच्चे आते हैं और औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं, जिससे वो अपने समुदाय की संस्कृति और काम को सीखते हुए जोड़ते हैं। इस यात्रा में बच्चे अपनी विभिन्न क्षेत्रों की दक्षता में सतत सुधार करते हुए सीखते हैं। तेजी से बदलते सामाजिक परिदृश्य में पालक भी अपने बच्चों के समुचित विकास के लिए हर कदम उठाने को तैयार रहते हैं, लेकिन बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए एक विशिष्ट सोच अपनाने की भी जरूरत पालकों को है। इसके लिए पालकों को बच्चों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, समझदारी से बच्चों से साथ संव्यवहार और सजगतापूर्वक उनका सहभागी बनने की जरूरत है।
आजकल की शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक व योजनाबद्ध तरीके से पालकों को बच्चों के प्रति जागरूक बनाने के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था का समावेश नहीं है। कई बार पालकों के असंतुलित व्यवहार से बच्चों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे अनजाने में भी बच्चों के अधिकारों का हनन हो जाता है। सही देखरेख के अभाव में बच्चों के शोषण और अधिकारों से वंचित रह जाने की प्रबल संभावना रहती है। पालक सावधानी व समझदारी से अपने बच्चे का भविष्य संवार सकते हैं। बच्चे कल के भविष्य होते हैं। पालक अपने बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनाकर परोक्ष रूप से सशक्त प्रदेश और देश निर्माण में भी सहायता कर सकते हैं।
उत्कृष्ट पालक बनने के लिए आवश्यक कदम………….
◼कुछ घरेलू नियम बनाएं और उनका पालन करें। जैसे सोने, खाने, मनोरंजन आदि का समय निश्चित करिए।
◼ बच्चों को पूरी गुणवत्ता के साथ अपना समय दें। बच्चों से बुद्धिमानी से बात करें, उनसे धैर्य से व्यवहार करें।
◼पति व पत्नी अर्थात बच्चे के माता-पिता को एक दूसरे के बनाए नियमों का पालन करना चाहिए व बच्चों से करवाना चाहिए।
◼ छोटे भाई-बहनों की शारीरिक लड़ाई को कभी बढ़ावा मत दीजिए। इससे हिंसात्मक व्यवहार बढ़ता है।
◼ ‘बच्चों द्वारा कोई गलती करने पर उन्हें पहले समझें फिर उन्हें सही व गलत दोनों पक्ष समझाईए। इससे विवेक जागृत होगा।
◼ प्रेम और अनुशासन के बीच संतुलन स्थापित करिए। बच्चों के सामने पति-पत्नी या परिवार की आपसी लड़ाई या मनमुटाव प्रस्तुत मत करिए यह गलत सीख देगा।
◼ बच्चों से सोच समझकर वादा करिए मगर जो कहें उसे पूरा करिए।
◼ बच्चों में भारत वर्ष की गौरवमयी संस्कृति और नैतिक मूल्यों की स्थापना करिए। इसके लिए पर्व और त्यौहारों को
बच्चों के साथ मनाइए व परिवारिक संस्कारों को अपनाइए।
◼ बच्चों में सत्य, सदाचरण, शांति, प्रेम व अहिंसा की भावना विकसित करिए। इससे बच्चों का चरित्र बहुत मजबूत होता है।
◼ बच्चों की आंखों में आंखें डालकर बात करिए उनके बस्ते, कपड़े, आलमारी की पूरी जानकारी रखिए। उनसे अंतरंगता बढ़ाइए।
◼ घर के किन्हीं दो बच्चों की कभी आपस में तुलना मत करिए। प्रत्येक बच्चा विशेष व अलग होता है। तुलना से ईर्ष्या व अहंकार बढ़ता है ना कि प्रेम।
उत्कृष्ट पालक बनने में बाधाएँ…
• टूटते हुए घर।
• घरेलू अनुशासन व घरेलू नियम कायदों का अभाव।
• पालकों के पास अतिव्यस्तता के कारण बच्चों के साथ समय बिताने का अभाव।
• टी.व्ही., वीडियो और इंटरनेट पर पर्याप्त नियंत्रण ना होना।
• पालकों को अपनी संस्कृति और मूल्यों की गहराई और उसके प्रभाव की समझ ना होना।
• बच्चों को समय ना देने के कारण अनावश्यक लाड़ प्यार करना।
ध्यान दें कि –
• बच्चों की अति सुरक्षा करने का परिणाम होता है उनमें आत्मविश्वास का अभाव।
• बच्चों को बहुत अधिक चिंता दिखाने का परिणाम होता है बच्चों में निराशा व चिंता की भावना पैदा होना।
• बच्चों से अति दक्षता की उम्मीद का परिणाम है बच्चों में असफल होने की भावना का विकास।
• बच्चों को बहुत ढील देने का अर्थ है। बच्चों में आक्रामक व हिंसक स्वभाव विकसित होना।
याद रखिए –
• सबसे ज्यादा जरूरी है बच्चों से संतुलित व्यवहार….
• बच्चे कैसे सीखते हैं ?
• बच्चे 80 प्रतिशत बातें सीखते हैं पालकों के व्यवहार से और उन्हें देखकर।
• बच्चे 20 प्रतिशत बातें सीखते हैं पालकों के उपदेशों से।
इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि पालक बच्चों के सामने उत्कृष्ट व्यवहार का उदाहरण पेश करें।
आक्रामक बच्चे
कुछ बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, ऐसे बच्चों के घर में निम्नलिखित सामान्य बातें दिखाई देती हैं-
• कोई घरेलू अनुशासन नहीं ।
• बच्चों की कोई देखभाल व अनुश्रवण नहीं ।
• नियंत्रण का अभाव।
• बच्चों की समस्याएं हल ना करना।
• बच्चों को शारीरिक या मानसिक तौर पर चोट पहुंचाना जैसे बच्चों के साथ मारपीट या अति
• अपमानजनक व्यवहार।
कुछ बच्चों का व्यवहार उत्कृष्ट होता है, क्योंकि ऐसे बच्चों के माता-पिता/पालक-
• बच्चों से अत्यंत गहरा प्रेमभरा बंधन रखते हैं।
• अपने कर्त्तव्यों को सही तरीके से निभाते हैं।
• आनंद व शांति का वातावरण परिवार में बनाए रखते हैं।
• अपनी नैतिकता और मूल्यों भरे व्यवहार से बच्चों में नैतिकता और संस्कार देते हैं।
• बच्चों की समस्याएं पूरी गंभीरता से समझते व सुलझाते हैं।
• बच्चों में विवेक जागृत करते हैं।
उत्कृष्ट पालक बनिए, उत्कृष्ट बच्चे गढ़िए, उत्कृष्ट राष्ट्र के निर्माण में योगदान दीजिए।
बच्चों के विकास में अभिभावक की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। इस भूमिका के निर्वाह में स्कूलों के साथ उनका अच्छा तालमेल और समन्वय वाला रिश्ता होना जरूरी है। ऐसा करने के लिए ऐसे फोरम की जरूरत है जहाँ शिक्षक, अभिभावक और बच्चे एक साथ मौजूद हों। विद्यालय एक ऐसी जगह है जहाँ हर समुदाय से बच्चे आते हैं और औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं, जिससे वो अपने समुदाय की संस्कृति और काम को सीखते हुए जोड़ते हैं। इस यात्रा में बच्चे अपनी विभिन्न क्षेत्रों की दक्षता में सतत सुधार करते हुए सीखते हैं।