नीलगाय से रक्षा मंत्रालय भी परेशान… अब इस तकनीक से पकड़ने की तैयारी…
January 8, 2023ग्वालियर,08 जनवरी । भारत में पाई जानेवाली मृग प्रजातियों में सबसे बड़ी प्रजाति नीलगाय वजह से पूरे देश में किसान परेशान रहते हैं। नीलगाय किसानों की खड़ी फसल बर्वाद कर देती हैं। लेकिन इस बार ग्वालियर की नीलगायों के आतंक की चर्चा रक्षा मंत्रालय में भी हो रही है। दरअसल, देश के सबसे बड़े एयरफोर्स बेस ग्वालियर के महाराजपुरा इलाके में नीलगायों ने नाक में दम कर रखा है। इस बेस पर राफेल से लेकर हर तरह के अत्याधुनिक फाइटर प्लेन प्रशिक्षण उड़ान भरते हैं। इसके आसपास लगभग दो सौ से ज्यादा नीलगाय हैं, जिनकी वजह से फाइटर प्लेन के संचालन में खलल पड़ रही है। अब इन नीलगायों को काबू करने के लिए सरकार पहली बार बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने की तैयारी में है। इस तकनीक से रणनीतिक ढंग से एक बाडा बनाकर इन्हें पकड़ा जाता है।
नीलगायों ने समूचे उत्तर भारत में आतंक मचा रखा है। उनके झुंड मध्यप्रदेश में भी करोड़ों रुपये की खड़ी फसल उजाड़कर चले जाते हैं। अनेक बार यह समस्या विधानसभा में भी चर्चा का विषय बन चुकी है। इस बार नीलगायों ने देश की सुरक्षा के लिए तैनात लड़ाकू विमानों की उड़ानों में खलल डाला है। ग्वालियर के महाराजपुरा बेस में राफेल समेत सभी अत्याधुनिक फाइटर प्लेन उड़ान भरते हैं। लड़ाकू विमानों के हैंगर से नियमित अभ्यास उड़ानों में नीलगायों के झुंड खलल डालते हैं। यह नीलगाय हवाई पट्टी तक आ जाती हैं, जिनसे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। एक बार तो दुर्घटना हो चुकी है। इस समस्या को लेकर भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मध्यप्रदेश सरकार से सहयोग मांगा है। यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील होने के कारण वन विभाग ने इसके लिए बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भेजा है। इससे नीलगाय को पकड़ा जा सकता है। पहले इन्हें मारने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन संवेदनशीलता के चलते इसे मंजूरी नहीं मिली तो पकड़ने पर विचार शुरू हुआ।
ग्वालियर डीएफओ विजेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि अभी इस मामले को लेकर पत्र व्यवहार चल रहा है। विशेषज्ञों के साथ सीसीएफ और डीएफओ के नेतृत्व में टीम स्थल निरीक्षण कर चुकी है। प्रोजेक्ट भी बन चुका है। सरकार से मंजूरी मिलते ही विशेषज्ञ बोमा हैबिटेट बनाने का काम शुरू हो जाएगा। श्रीवास्तव ने बताया कि बोमा तकनीक का इस्तेमाल खेत या खुली जगह में नहीं किया जा सकता क्योंकि यह खर्चीली है। सीमित हिस्से में ही हैबिटेट की अधोसंरचना तैयार की जा सकती है। इसके लिए बाडा बनाना पड़ता है जो बड़े खुले भूभाग पर बनाना संभव नहीं है।
जंगली जानवरों और पशुओं को पकड़ने की यह तकनीक दक्षिण अफ्रीका में उपयोग की जाती है। इससे जानवरों को जीते-जी पकड़ने की कोशिश होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि नीलगाय को पकड़ने के लिए एक स्थान को चयनित किया जाएगा। वहां हैबिटेट तैयार किया जाएगा। वहां नमक बिछाया जाता और अन्य ऐसे केमिकल डाले जाते हैं जिनकी गंध नीलगाय को आकर्षित करती है। जब उस क्षेत्र में नीलगायों के बड़े झुंड पहुंच जाते हैं तो इसे एक बाड़े में तब्दील कर गेट लगा दिया जाता है। खास तरह से खुले हुए ट्रक लगे होते हैं। जैसे ही नीलगाय उस ट्रक में घुसती है, वैसे ही वह कैद हो जाती है।
नीलगाय को पकड़ना और मारना मुश्किल
नीलगाय को सबसे फुर्तीला और मजबूत देहयष्टि वाला जानवर माना जाता है। इसे पकड़ना या मारना बहुत मुश्किल होता है। इसकी वजह उसकी देह ही है। वह इतनी छलांग लगाते हुए भागती है कि गोली का निशाना भी चूक जाता है। यह घोड़े के आकार की होती है लेकिन इसका पीछे का हिस्सा आगे के हिस्से से छोटा होता है, इसलिए यह दौड़ते समय अलग नजर आती है। निशाना भी चूक जाता है। इसका वजन भी काफी होता है। हर नीलगाय औसतन डेढ़ सौ से ढाई सौ किलो तक वजन की होती है।