पुलिस के साथ सरकार की छवि भी खराब होती है
November 22, 2024सुनील दास
सरकार व पुलिस विभाग भी भले ही दिखावे के लिए करता हो,लेकिन वह पुलिस वालों का जनता से कैसा व्यवहार करना है,इसके लिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजन करते हैं।ऐसा नहीं कह सकते कि किसी की भी सरकार को हो उसको पता न हो कि थाने के भीतर पुलिस लोगों के साथ इस तरह का व्यवहार करती है, वह उनको बहुत अपमानजनक लगता है। पता है तब ही तो पुलिस का व्यवहार सुधारने का प्रयास किया जाता है।पुलिस अपमानजनक व्यवहार आम लोगों के साथ ज्यादा करती जबकि आम लोगों के साथ उसे सभ्यता से पेश आना चाहिए। किसी ने किसी के खिलाफ झूठी रिपोर्ट भी लिखा दी तो पुलिस उसके साथ ऐसे पेश आती है जैसे वह आदतन अपराधी हो। इसका खामियाजा कई बार पुलिस को भी भुगतना पड़ता है क्योंकि कई बार ऐसे लोग कभी थाने नहीं गए होते हैं,पुलिस उनको पकड़कर थाने ले आती है और पूछताछ के नाम पर इतना अपमान करती है, इतना डराती है कि उस आदमी को लगता है कि जिंदगी भर की कमाई इज्जत चली गई, अब जीने का कोई मतलब नहीं है, और वह संवेदनशील व्यक्ति पुलिस के पारंपरिक असंवेदनशील व्यवहार के कारण घर जाते ही या थाने में मौका देखकर खुदकुशी कर लेता है।
गैरेज संचालक मोहम्मद शहजाद भी आम लोगों की तरह इज्जत से,शांति से जीना चाहता था,लेकिन कुछ लोगों ने उसके और उसके बेटे के खिलाफ झूठा मामला दर्ज करा दिया। पुलिस ने भी उसके साथ असंवेदनशील व्यवहार घंटों पूछताछ के नाम पर किया.। पुलिस को सबके साथ एक जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। आदतन अपराधियों के साथ वह जैसा व्यवहार करती है, कम से कम पहली बार थाने आए लोगों के साथ तो अच्छा व्यवहार करना चाहिए। उनका पक्ष सुनना चाहिए। और आश्वस्त करना चाहिए कि जांच हाेगी तो सच सामने आ जाएगा। अगर आपके खिलाफ किसी ने झूठी रिपोर्ट लिखाई है तो उसका पता भी जांच में हम लगा लेंगे।जनता यही तो चाहती है कि पुलिस जांच करे और दोषी को अदालत में पेश करे और बेगुनाह को छोड़ दे।
पुलिस तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण ऐसा होता नहीं है। कोई भी किसी मामले में थाने लाया जाता है, थाने में कुछ लोग होते हैं जिनका काम होता है, उससे पैसा कैसे बनाया जा सकता है।इसके लिए उसको डराया जाता है, अपमानित किया जाता है ताकि वह डर कर पैसा दे दे।शहजाद की पत्नी का तो आरोप है कि महज पचास हजार रुपए के लिए उसके पति को मार डाला गया।शहर के थानों में आने-जाने वाले जानते हैं कि थाने में चलती किसकी है।कहने को तो हर थाने मेें थानेदार होते है, लेकिन वह बदलते रहते है, उनकी नियुक्ति व बदली होती रहती है, थाने में तो स्थायी रूप से सिपाही व हवलदार ही रहते है। वही थाने को चलाते हैं, वही थाने की ऊपरी कमाई करते हैं। वह ज्यादातर कमाई दोनों पक्षों समझौता कराके करते हैं।
इससे किसी को कोर्ट जाने की जरूरत नहीं पड़ती, सारा मामला थाना स्तर पर ही निपट जाता है।सब जानते हैं कि थाने में एक उगाही तंत्र होता है तो कई तरह थाने आने वाले लोगों से उगाही करता है, वह जितना पैसा मांगता है कई बार दे नहीं पाते हैं तो वह डरकर खुदकुशी कर लेते हैं। आम लोग तो चाहते हैं कि लोगों के थाने से न्याय मिले, जिंदगी मिले। लेकिन कई थानों में लोगों को प्रताड़ना मिलती है, मौत मिलती है। थाने जब लोगों को प्रताडना का केंद्र बन जाते हैं, मौत बांटने का केंद्र बन जाते है, लोगों को उन पर भरोसा उठ जाता है।लोग वहां जाने से डरते है, शिकायत करनी हो तो भी डरकर नहीं जाते हैं। पुलिस का यह डराने वाला चेहरा अपराधियों के लिए होना चाहिए ताकि अपराधी उससे डरे लेकिन पुलिस तो अपने डरावने से चेहरे से आम लोगों को कभी कभी इतना डराती है कि लोग यकीन नहीं कर पाते हैं. यह पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए है।पुलिस को समझने की जरूरत है कि एक घटना से उसकी छवि इतनी खराब होती है कि उसे सुधारना बहुत ही मुश्किल होता है, एक बुरी घटना के बात पुलिस कितना ही अच्छा काम करे उसका प्रभाव बुरी घटना के प्रभाव का खत्म नहीं कर सकता है। एक बुरी घटना लोगों को बहुत डराती है लेकिन पुलिस की कई अच्छी बातें लोगों को उतना प्रभावित नहीं करती है। क्योंकि लोगों को आए दिन होने वाली बुरी घटनाओं के कारण लगता है कि पुलिस का यह स्वभाव हो गया है।पुलिस सुधरने वाली नहीं है।सरकार को ऐसी घटनाओं को संवेदनशीलता लेना चाहिए,लोगों को लगना चाहिए कि सरकार उसके साथ है न कि पुलिस के साथ है। पुलिस की ज्यादतियों के कारण पुलिस की छबि तो खराब होती है, साथ ही सरकार की छबि खराब होती है कि यह कैसा सुशासन है कि पुलिस थाने में मनमानी कर रही है।