भारत का अतीत, वर्तमान और भविष्य आदिवासी समुदाय के बिना अधूरा : मोदी
November 1, 2022जयपुर ,01 नवंबर । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत का अतीत, वर्तमान और भविष्य आदिवासी समुदाय के बिना अधूरा है और देश उनके बलिदान का ऋणी है और उनकी सेवा करके यह ऋण चुका सकता है। श्री मोदी मंगलवार को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में ‘मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्ने आदिवासी लोगों की वीरता से भरे पड़े हैं। लेकिन आजादी के बाद के इतिहास में आदिवासी समुदाय के संघर्ष और बलिदान को उचित स्थान नहीं मिला।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी की शुरुआत से लेकर 20वीं सदी तक ऐसा कोई दौर नहीं था जब आदिवासी समाज ने आजादी की लड़ाई की कमान नहीं संभाली थी। राजस्थान में आदिवासी महाराणा प्रताप के साथ पूरी ताकत से खड़े रहे। श्री मोदी ने कहा कि आदिवासी समाज के इतिहास और बलिदान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित विशेष संग्रहालय बनाए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में आदिवासी समाज का विस्तार और भूमिका इतनी बड़ी है कि इसके लिए समर्पित भावना से काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश आदिवासी समुदाय के लिए एक स्पष्ट नीति के साथ काम कर रहा है। श्री मोदी ने कहा कि मानगढ़ धाम आदिवासी वीरों के बलिदान, तपस्या और देशभक्ति का प्रतीक है। स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों का नेतृत्व करने वाले स्वतंत्रता सेनानी गोविंद गुरु को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि गोविंद गुरु ने अपना परिवार खो दिया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने कहा कि गोविंद गुरु न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक संत और समाज सुधारक भी थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारों को मिलकर मानगढ़ धाम को इस तरह विकसित करना चाहिए कि यह स्थान नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्थान बन सके। कार्यक्रम को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय संस्कृति और संसदीय मामलों के राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल भी मौजूद थे। इससे पहले, श्री मोदी ने गुरु गोबिंद की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की और 1913 में शहीद हुए आदिवासियों को भी श्रद्धांजलि दी।