चुनाव में वादों के बाद अब दावों का दौर
May 28, 2024– उमेश चतुर्वेदी
अभी तक प्रचार के दौरान राजनीतिक दल वादों की झड़ी लगा रहे थे, पर अब दावों का दौर है। प्रमुख विपक्षी नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि मोदी सरकार जाने वाली है। दिलचस्प यह है कि भाजपा की सीटें घटने का दावा करने वाले किसी दल के पास कोई ठोस आंकड़ा नहीं है कि वे कितनी सीटें जीत रहे हैं।
भाजपा नेतृत्व अपने ढंग से अपनी सीटें बढ़ाने की कोशिशों में जुटा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यानी तीस मई तक रैली का कार्यक्रम है, तो गृह मंत्री अमित शाह अंतिम दौर तक अपनी सीट बढ़ाने के प्रयास में पूरी सक्रियता से लगे हुए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी अपनी रैलियों में पहले से दावा कर रहे हैं कि भाजपा 180 सीटों पर सिमटने जा रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का दावा है कि भाजपा को 200 से कम सीटें आयेंगी। पश्चिम बंगाल में अलग, किंतु राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन के साथ भाजपा का विरोध कर रहीं ममता बनर्जी का कहना है कि भाजपा को इस बार 220 तक सीटें मिल रही हैं। अखिलेश यादव का तो दावा है कि भाजपा को उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं मिलेगी। तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि भाजपा को बहुमत नहीं मिलेगा। केजरीवाल भी ऐसा ही कह रहे हैं।
अब विपक्ष का हाल देखा जाए। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इतिहास में सबसे कम 322 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है, जिनमें से दो सीटों पर से उसके उम्मीदवार मैदान खाली कर चुके हैं। चुनावी माहौल की सनसनी बने केजरीवाल की पार्टी महज 22 सीटों पर मैदान में है। अन्य दल भी दस से पचास सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। अव्वल तो यह है कि विपक्षी दलों के नेताओं ने जिस तरह चुनाव अभियान चलाया है, उसके संकेत साफ हैं। वे भाजपा को हराने के लिए नहीं, बल्कि मोदी को कमजोर करने और भाजपा की सीटें घटाने के लिए लड़ रहे थे।
सोशल मीडिया के वर्चस्व के दौर में चुनाव और राजनीति ऐसे विषय हो गये हैं, जिनमें कोलाहल भरी चर्चाओं को ही सच मान लिया जाता है। कुछ ऐसा ही हाल मौजूदा चुनाव और विपक्षी दलों के दावों का भी है। वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों में उत्तर भारत और पश्चिम भारत में भाजपा का कांग्रेस से सीधा मुकाबला हुआ था। पिछले चुनाव में आमने-सामने के मुकाबले में भाजपा ने 92 प्रतिशत सीटों पर कांग्रेस को मात दी थी। राहुल गांधी के दावों में दम तब नजर आयेगा, जब यह मान लिया जाए कि कांग्रेस की स्थिति बेहतर हुई है।
फिर यह भी सवाल है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे बड़े राज्यों, जहां 134 सीटें हैं, वहां भाजपा के मुकाबले कितनी सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। अखिलेश यादव खुद 63 सीटों पर लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ आकर भाजपा को कितनी चोट पहुंचाने की स्थिति मे है? मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, तेलंगाना, गोवा और गुजरात की 149 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है. क्या इन सीटों पर कांग्रेस भारी पड़ रही है? यदि इसका जवाब हां में है, तो भाजपा को लेकर हो रहे दावों में दम है।
कांग्रेस के मुकाबले भाजपा ने 115 ज्यादा यानी 437 उम्मीदवार उतारा है। पश्चिम बंगाल में भाजपा का मुकाबला जहां तृणमूल कांग्रेस से है, वहीं ओडिशा में वह बीजू जनता दल के सामने है। अब तक के जो आकलन सामने आये हैं, उसमें माना जा रहा है कि पूर्वी भारत के इन राज्यों में भाजपा पहले से कुछ बेहतर करने जा रही है। पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में भाजपा का कांग्रेस से ही मुकाबला है, वहां भी भाजपा की स्थिति बेहतर बतायी जा रही है। वैसे पिछले दो चुनावों में आमने-सामने के मुकाबलों में भाजपा ने कांग्रेस को मात ही दी है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस को लेकर लोगों का मन एकदम बदल चुका है। संसद सत्र के आखिरी दिन अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने अबकी बार चार सौ पार का नारा दिया। तीन चरणों के चुनाव तक उन्होंने चार सौ पार का नारा खूब दोहराया। इस नारे के जरिये उन्होंने मौजूदा चुनाव का एक नैरेटिव सेट कर दिया। मोटे तौर पर मतदाताओं में इन दिनों सबसे ज्यादा सवाल यह पूछा जा रहा है कि भाजपा का चार सौ पार के नारे का क्या होगा। विपक्ष मोदी के बनाये इस चक्रव्यूह में फंस गया। वह चार सौ के दावे को कमजोर करने में ही अपनी पूरी ताकत लगाता दिखता रहा। यही वजह है कि हर कोई के अपने दावे हैं।
इस बीच सबसे बड़ी बात तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कही है। उनका कहना है कि कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए महज 125 सीटें चाहिए, तो भाजपा को 250। कांग्रेस के पास अभी 52 सांसद हैं। तो क्या कांग्रेस यह मान रही है कि उसकी सीटें दोगुनी से ज्यादा बढ़ने जा रही हैं? अगर ऐसा हो भी रहा, तो कांग्रेस कहां जीत रही है? उसके ज्यादातर उम्मीदवार तो भाजपा के सामने मैदान में हैं, जो अब भी भारी नजर आ रही है। केरल, पंजाब, आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्य जरूर ऐसे हैं, जहां वह भाजपा के बजाय उन दलों से मुकाबले में है, जिनके साथ राष्ट्रीय स्तर पर उनका गठबंधन है। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस की इतनी सीटें अपने सहयोगियों की कीमत पर आयेंगी। अगर ऐसा हुआ, तो क्या समर्थक दल सरकार बनाने के जादुई आंकड़े जितनी जरूरी सीटें हासिल कर पायेंगे? एक ही जमीन पर लड़ते हुए ऐसा संभव तो कम ही लगता है।
मतदाता का फैसला ईवीएम में बंद हो चुका है, जिसकी असलियत चार जून को मतगणना के साथ सामने आयेगी। तब असल तसवीर हमारे सामने होगी. तब तक दावे करने में हर्ज ही क्या है! किसके दावे में दम है और किसका दावा खोखला है, उसका खुलासा तो चुनाव नतीजे कर ही देंगे। सवाल यह है कि ऐसे में दावों की जरूरत ही क्या है। इनकी जरूरत इसलिए है कि हर दल को अपने वोटरों के मनोबल को कम से कम मतगणना के दिन तक बनाये रखना है। फिर हम मीडिया के वर्चस्ववादी दौर में हैं, जिसे चर्चा के लिए रोजाना मसले चाहिए ही। आम जनता भी सहज रूप से अपने सामूहिक फैसले को जानने को उत्सुक है, जिसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए भी ये दावे जरूरी हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)