आरक्षण मामले में भारी तो भाजपा पड़ेगी…
April 29, 2024लोकसभा चुानव के लिए दूसरे चरण का चुनाव हो चुका है। अब तीसरे चरण के लिए प्रचार तेज हो गया है। एक दो दिन में भाजपा व कांग्रेस की तरफ से जो बयान आए हैं, उससे ऐसा लगता है कि तीसरे चरण के चुनाव में आरक्षण,संविधान व तुष्टिकरण का मुद्दा गरमाएगा।भाजपा ने दूसरे चरण से कांग्रेस की तुष्टिकरण को देश के सामने लाकर साफ कर दिया था कि कांग्रेस की तुष्टिकरण की आजादी के समय चली आ रही नीति बदली नहीं है। पहले वह खुलकर यह बात कहती थी, आरक्षण का वादा करती थी, मुस्लिमों के आरक्षण के लिए प्रयास भी करती थी।
२०१४ के बाद मोदी ने जब से भारतीय राजनीति में बहुसंख्यकों की भूमिका को केंद्र में लाया है तब से कांग्रेस को एहसास हो गया है कि अब उसकी तुष्टिकरण की राजनीति से उसको नुकसान हो रहा है। यही वजह है कि २०१४ मं खुलकर मुस्लमों को आरक्षण का वादा करनेवाली कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति तो नहीं बदली है, उसकी भाषा बदल गई है। अब कांग्रेस यह नहीं कहती है कि वह मुस्लिमों के लिए खुलकर क्या करेगी। अब अल्पसंख्यकों की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण करना चाहती है। कांग्रेस अब बहसंख्यकों को पहले की तरह खुलकर नाराज नहीं करना चाहती है। वह जानती है कि बहुसंख्यक के नाराज होने का मतलब है कि उनके वोट एकमुश्त भाजपा को ही जाना है। राममंदिर प्राण प्रतिष्टा समारोह में न जाकर कांग्रेस ने जो गलती है,उसका खामियाजा तो उसे भुगतना पड़ेगा खासकर यूपी के चुनाव में।
यहां उसने बहुसंख्यक को नाराज कर अल्पसंख्यकों को खुश करने का प्रयास किया था लेकिन कांग्रेस भी जानती है कि वह महज अल्पसंख्यकों के भरोसे चुनाव नहीं जीत सकती। इसलिए लोकतंत्र, संविधान, आरक्षण के मुद्दे उठाकर बहुसंख्यकों का वोट पाने का प्रयास कर रही है। जातीय जनगणना के बहाने बहुसंख्यक समाज को जातियों में बांटना चाहती है और धन वितरण के नाम पर देश को अमीर व गरीब में बांटना चाहती है। कांग्रेस जानती है कि हिंदू समाज जितना बंटेगा उसकी जीत उनती ही तय होती जाएगी।
भाजपा भी इस बात को बखूबी समझ रही है कि कांग्रेस क्या करना चाहती है। यही वजह है कि भाजपा हर मामले में बहुसंख्यक समाज को यही समझा रही है कि कांग्रस बहुसंख्यक समाज की विरोधी है,इस विरोध को कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भी नहीं छिपाया है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि बहुसंख्यकवाद के लिए देश में कोई जगह नहीं है, यह एक तरह की तानाशाही है।
देश में कांग्रेस व विपक्ष खुलकर अल्पसंख्यक के साथ है तो भाजपा खुलकर बहुसंख्यकों के साथ है। दो चुनाव मेंं बहुसंख्यक भाजपा के साथ है,इसलिए दो चुनाव जीत चुकी है और आश्वस्त है कि वह तीसरा चुनाव भी जीतेगी। लोकतंत् में जिसके साथ बहुमत होता है, जीतता वही है। भारत में बहुसंख्यक जिसके साथ होंगे बहुमत उसके साथ होगा। बहुसंख्यक समाज को उसकी ताकत का एहसास पीएम मोदी ने कराया है। इसलिए वह एकजुट है और जिसे चाहता है, उसे सत्ता सौंपता है। कांग्रेस बहुसंख्यक समाज की ताकत को जानती थी लेकिन वह उसे एकजुट कर एहसास नहीं दिलाना चाहती थी कि उसका देश की रानजीति में कोई बड़ा महत्व है।जब से मोदी ने बहुसंख्यक समाज को उसकी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया है,वह मोदी के साथ है।
उम्मीद की जा रही है कि वह अभी बरसों इसी तरह एकजुट रहेगा और अपनी राजनीतिक ताकत को और बढ़ाने का प्रयास करेगा। इस आधार पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस आरक्षण, संविधान, लोकतंत्र की कितनी ही बात कर ले लेकिन वह मुसलमानों को ओबीसी का आरक्षण देकर मुसलमानों का भला नहीं कर सकती। बहुसंख्यक समाज को नाराज कर अपना राजनीितक नुकसान जरूर करवाना चाहती है। ओबीसी, दलित, आदिवासी वैसे ही कांग्रेस से नाराज हैंं। इनको यह पता चलने पर कि कांंग्रेस उनका आरक्षण मुसलमानों को देना चाहती है। यह लोग तो कांंग्रेस को जितान से रहे यानी बहुसंख्यक समाज ठान ले कि कांग्रेस को हराना है तो वह तीसरी बार भी आसानी से हरा सकता है। यानी आरक्षण की लड़ाई में भाजपा की कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है।