चैत्र नवरात्रि पर कैसे करें माता की शस्त्रोक्त पूजा, जानिये संपूर्ण विधि
April 8, 2024हिंदू कैलेंडर के अनुसार वर्ष का पहला माह चैत्र माह होता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होती है। इस बार 9 अप्रैल 2023 से यह नवरात्रि प्रारंभ होकर 17 अप्रैल को समाप्त होगी। चैत्र नवरात्र में नौदुर्गा पूजा का महत्व है। आओ जानते हैं माता पूजा का शास्त्रोक्त नियम और संपूर्ण विधि।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 08 अप्रैल 2024 को रात्रि 11:50 बजे से।
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 09 अप्रैल 2024 को रात्रि 08:30 को।
उदयातिथि के अनुसार 09 अप्रैल 2024 मंगलवार को चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होगी।
नवरात्रि घटस्थापना, कलश और मां दुर्गा पूजा के शुभ मुहूर्त:-
ब्रह्म मुहूर्त : प्रात: 04:31 से प्रात: 05:17 तक।
अभिजित मुहूर्त : सुबह 11:57 से दोपहर 12:48 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:30 से दोपहर 03:21 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:42 से शाम 07:05 तक।
अमृत काल : रात्रि 10:38 से रात्रि 12:04 तक।
निशिता मुहूर्त : रात्रि 12:00 से 12:45 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग : सुबह 07:32 से शाम 05:06 तक।
अमृत सिद्धि योग : सुबह 07:32 से शाम 05:06 तक।
नवरात्रि दुर्गा पूजा सामग्री लिस्ट
माता की तस्वीर या मूर्ति, कलश, घट, गंगाजल, सिक्का, गेहूं या अक्षत, मौली, सिंदूर रोली, अक्षत, कुमकुम, आम के पत्ते का पल्लव, कलावा, गेहूं या जौ, पीतल या मिट्टी का दीपक, घी, रूई बत्ती, सिंदूर, लाल वस्त्र, जटा वाला नारियल, इलायची, फल या मिठाई, हनव कुंड, अगरबत्ती, चौकी के लिए लाल कपड़ा, दुर्गासप्तशती किताब, साफ चावल, अखंड ज्योति का दीया, माचिस, मिट्टी का बर्तन, शुद्ध मिट्टी, मिट्टी पर रखने के लिए एक साफ कपड़ा, श्रृंगार का सामान, हवन के लिए आम की लकड़ी, हवन सामग्री, दीपक, घी, तेल, फूल, फूलों की माला, लौंग, कपूर, बताशे, पान, सुपारी, कलावा, तांबे का कलश, मेवे आदि।
16 श्रृंगार का सामान में मेहंदी, बिंदी, लाल चूड़ी, सिंदूर, लाल चुनरी, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, आलता, बिछिया, दर्पण, कंघी, महावर, काजल, चोटी, पायल, इत्र, लाल चुनरी, पायल, कान की बाली, नाक की नथ, आदि सामान।
दुर्गा माता की पूजा विधि:
प्रतिपदा को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें।
घर के ही किसी पवित्र स्थान पर पूजा स्थल को साफ करें।
वहां पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोएं। वेदी नहीं तो मिट्टी के घट में बोएं।
वेदी पर या समीप के ही पवित्र स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर वहां सोने, चांदी या तांबे का कलश स्थापित करें।
इसके बाद कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बाधें। कलश स्थापना के बाद गणेश पूजन करें।
इसके बाद वेदी के किनारे पर चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर देवी की किसी धातु, पाषाण, मिट्टी व चित्रमय मूर्ति विधि-विधान से विराजमान करें।
चित्र या मूर्ति को जल से पवित्र करने के बाद 16 श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें।
इसके बाद मंत्रों के साथ माता का आवाहन करें।
तत्पश्चात मूर्तिका आसन, पाद्य, अर्ध, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन करें।
इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ, दुर्गा स्तुति करें। पाठ स्तुति करने के बाद दुर्गाजी की आरती करके प्रसाद वितरित करें।
इसके बाद कन्या भोजन कराएं। फिर स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
प्रतिपदा के दिन घर में ही जवारे बोने का भी विधान है। नवमी के दिन इन्ही जवारों को सिर पर रखकर किसी नदी या तालाब में विसर्जन करना चाहिए।
अष्टमी तथा नवमी महातिथि मानी जाती हैं। इन दोनों दिनों में पारायण के बाद हवन करें फिर यथा शक्ति कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।