शक्कर की चाश्नी से महक रही अमीनाबाद की बताशे वाली गली
October 24, 2022लखनऊ, 24 अक्टूबर । अमीनाबाद की बताशे वाली गली इन दिनों शक्कर की चाश्नी की महक से सराबोर हो गईं। आजकल यहां शक्कर के खिलौनों का कारोबार जोरो पर हैं । इसके अलावा गट्टा, बताशे, रेवड़ी की बिक्री तेज हो गई हैं। शहर के पुराने इलाके अमीनाबाद में भी चौक की तरह ही गलियां हैं। चौक की गलियां प्रसिद्ध है, लेकिन अमीनाबाद में भी कम गलियां नहीं है। जैसे मारवाडी वाली गली, बान वाली गली, बताशे वाली गली इत्यादि।
यहां बात कर रहे हैं बताशे वाली गली की। इस गली में वैसे तो बारहों मास ही चीनी से भरी कढ़ाई भट्टी पर चढ़ती है और फिर उसकी चाश्नी उतारी जाती है। बताशा, बताशफेनी, रेवडी तो पूरे साल ही बिकती है और गजक जाड़े में बनती है। लेकिन शक्कर के खिलौने बनाने का काम इसी दीपावली के समय ही होता हैं। चीनी के खिलौने बनाने वाले हिमांशू बताते हैं कि करवा चौथ से पहले ही खिलौनों को बनाने के लिए चाश्नी भट्टी पर चढ़ने लगती हैं । इस समय यह काम दिन-रात चलता है। लखनपुरी में अमीनाबाद, चौक में ही खिलौने बनाए जाते है।
यह सीजनल काम और इसी समय इसकी मांग भी बहुत बढ जाती है। दूसरे शहरों के व्यापारी भी यहां से माल उठाते हैं, उनकी मांग पूरी करनी पड़ती है। इस गली में खिलौनों का थोक और फुटकर दोनों व्यापार होता है। शहर में दीपावली पर खिलौनों, गट्टे की दुकान लगाने वाले छोटे व्यापारी भी यहीं से माल ले जाते है।
उन्होंने बताया कि खिलौने भारी भी होते हैं और हल्के भी बनाए जाते हैं। क्वालिटी के लिहाज से देखें तो हल्के खिलौने अच्छे माने जाते हैं और बिकते भी मंहेगे हैं लेकिन जिसकी जैसी पसंद होती है, वह वैसे ही खिलौने खरीदता है। हिमांशु बताते हैं कि खिलौनों में परम्परागत हाथी, महल, चिड़िया ही ज्यादा बनते हैं। नए सांचे बन नहीं रहे हैं।
उन्होंने बताया कि खिलौने बनाने में तीन से चार से आदमियों की जरूरत होती है। यह बहुत ही जल्दी का काम होता है। जैसे ही चाश्नी उतरती है उसे ही तुरंत ही सांचे में ढालना होता है और उसके बाद जल्दी ही सूखने के लिए रख देना होता है। अगर चाश्नी ठंडी हो गई तो खिलौने नहीं बन पाएंगे।