47 वर्षो बाद फिर रायबरेली-अमेठी से गांधी परिवार को वनवास !
March 31, 2024उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 17 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेगी। सपा से समझौते के तहत कांग्रेस को यह सीटें मिली हैं। सपा और कांग्रेस इंडी गठबंधन का हिस्सा हैं, इसलिये जहां कांग्रेस चुनाव लड़ेगी उस सीट पर समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी नहीं होगा। कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी से एक सीट जीतने में सफलता मिली थी और पूरे प्रदेश में उसका वोट मात्र दो फीसदी के करीब था। 2019 से आज तक कांग्रेस की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है, बल्कि गिरावट ही देखने को मिली है। कांग्रेस की हालत इतनी दयनीय है कि गांधी परिवार तक यूपी से चुनाव लड़ने की ताकत नहीं जुटा पा रहा है। 2019 में राहुल गांधी अमेठी हार गये थे तो 2024 में सोनिया गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली को टाटा- बाय-बाय कह दिया है। वह राज्यसभा की सदस्य बन गई हैं। अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस की आज जैसी दयनीय स्थिति 47 वर्ष पूर्व 1977 में देखने को मिली थी, जब इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में रायबेरली से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को समाजवादी राजनारायण सिंह से और अमेठी से संजय गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा था। 1977 और 2024 के आम चुनाव में बस अंतर इतना है कि 1977 में गांधी परिवार की तानाशाही के चलते वोटरों ने उसको ठुकरा दिया था,लेकिन 47 वर्षो के बाद 2024 में गांधी परिवार को विश्वसनीयता के संकट के कारण रायबरेली-अमेठी से दूर भागना पड़ रहा है।
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गौरतलब हो, रायबरेली और अमेठी का नाम आते ही गांधी परिवार की चर्चा सबसे पहले शुरू होती है। असल में यहां की राजनीतिक तस्वीर गांधी परिवार के इर्दगिर्द घूमती रही है तो यहां की जनता ने गांधी को गांधी से लड़ते हुए भी देखा है। यहां पर दो बार गांधी परिवार के बीच ही मुकाबला हो चुका है। हैरानी की बात तो यह है कि दोनों बार विरासत एक बड़ा मुद्दा था। पहले चुनाव में वारिस कौन तो दूसरे चुनाव में असली गांधी कौन की गूंज। यह बात अलग है कि दोनों चुनावों में शिकस्त खाने वाले गांधी ने दोबारा से अमेठी की तरफ घूमकर भी नहीं देखा। वर्ष 1980 में संजय गांधी ने यहां से पहली बार जीत दर्ज की। उसी साल विमान हादसे में उनकी मौत के बाद 1981 में हुए उपचुनाव में राजीव गांधी मैदान में उतरे। यहां से उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। इसके बाद सियासत ने रंग दिखाना शुरू कर दिया। वर्ष 1984 का चुनाव उस वक्त दिलचस्प हो गया जब कांग्रेस के राजीव गांधी के सामने उनके स्वर्गीय छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने निर्दल प्रत्याशी के तौर पर मोर्चा खोल दिया। 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में उतरने वाली मेनका गांधी ने 1982 से ही अमेठी में सक्रियता बढ़ा दी थी। ऐसे में जब वह 1984 में चुनाव में उतरीं तो अमेठी की जनता उलझन में पड़ गई। एक ओर इंदिरा की हत्या के बाद जनता की सहानुभूति राजीव गांधी के साथ थी तो वहीं दूसरी ओर अमेठी के सांसद रहे संजय गांधी की विधवा मेनका गांधी के प्रति आत्मीय लगाव, लेकिन बाजी राजीव ने ही मारी। वर्ष 1984 में राजीव गांधी को प्रचार के लिए पहली बार सोनिया गांधी को मैदान में उतारना पड़ा। हालांकि उस वक्त सोनिया ने कोई सभा तो नहीं की, लेकिन वह घर-घर जाकर महिलाओं से मिल रही थीं। पूरे चुनाव तक उन्होंने ही प्रचार की बागडोर संभाली।
दूसरा मुकाबला वर्ष 1989 में हुआ, जब कांग्रेस के राजीव गांधी के सामने महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी ने ताल ठोंक दी। उस वक्त जनता दल व भाजपा ने संयुक्त रूप से राजमोहन गांधी पर भरोसा जताया था। इस चुनाव में असली बनाम नकली गांधी का मुद्दा खूब उछला। कई बड़े दिग्गज नेताओं ने सभा की। आरोप प्रत्यारोप के खूब शब्दवाण चले, लेकिन अमेठी की जनता ने एक बार फिर राजीव गांधी का साथ दिया, लेकिन इससे उलट आज अमेठी-रायबेरली में गांधी परिवार की स्थिति काफी दयनीय हो गई है। 1977 से लेकर अब तक यह पहला मौका है, जब कांग्रेस टिकट को लेकर उलझन में है। अमेठी से 2019 के चुनाव में शिकस्त खाने के बाद राहुल गांधी को दोबारा से मैदान में उतारने के लिए कांग्रेसी लगातार पैरवी कर रहे हैं, लेकिन हार के डर से राहुल अमेठी से चुनाव लड़ने की ताकत नहीं जुटा पा रही है। अमेठी से राहुल गांधी को चुनाव लड़ाने की इच्छा लिये अमेठी के कांग्रेसी दिल्ली तक की दौड़ भी लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पा रहा है। यही स्थिति रायबरेली की भी है। बता दें अमेठी और रायबरेली में पांचवें चरण में मतदान होना है।