छत्तीसगढ़: गणतंत्र दिवस पर छत्तीसगढ़ की झांकी में बड़ेडोंगर के लिमऊ राजा को किया जाएगा प्रदर्शित

छत्तीसगढ़: गणतंत्र दिवस पर छत्तीसगढ़ की झांकी में बड़ेडोंगर के लिमऊ राजा को किया जाएगा प्रदर्शित

January 24, 2024 Off By NN Express

जनजातीय समाज में आदि काल से उपस्थित लोकतांत्रिक चेतना का किया जा रहा प्रदर्शन

कोण्डागांव । गणतंत्र-दिवस पर नई-दिल्ली के कर्तव्य-पथ पर प्रदर्शित होने वाली छत्तीसगढ़ की झांकी में कोण्डागांव जिले के बड़े-डोंगर के लिमऊ-राजा और बस्तर की आदिम जन संसद-मुरिया दरबार को केंद्रीय विषय बनाया गया है। इसके साथ ही झांकी की साज-सज्जा में बेलमेटल और टेराकोटा शिल्प की खूबसूरती से भी दुनिया को परिचित कराया गया है। 

झांकी के प्लेटफार्म पर लिमऊराजा के निकट ही बेलमेटल का बैठा हुआ सुंदर नंदी प्रदर्शित है, जो आदिम समाज के आत्मविश्वास और सांस्कृतिक सौंदर्य के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। प्लेटफार्म पर चारों दिशाओं में टेराकोटा शिल्प से निर्मित सुसज्जित हाथी सजे हुए हैं, जिन्हें लोक की सत्ता के प्रतीक के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। मुरिया दरबार में बस्तर में आदिम काल से लेकर अब तक हुए सांस्कृतिक विकास की झलक भी दिखाई जा रही है। झांकी से सबसे सामने के हिस्से में एक आदिवासी युवती को अपनी बात प्रस्तुत करते हुए दर्शाया जा रहा है, युवती की पारंपरिक वेशभूषा के माध्यम से बस्तर के रहन-सहन, सौंदर्यबोध और सुसंस्कारित पहनावे को प्रदर्शित किया जा रहा है। बस्तर की धुरवा जनजाति के लोकप्रिय परब नृत्य को भी शामिल किया गया।

कौन हैं लिमऊ राजा ?

कोण्डागांव के बड़ेडोंगर को बस्तर राज्य की प्रथम राजधानी माने जाने वाले बड़े़ डोंगर के संबंध में वहां के पुरावशेषों, जनश्रुतियों एवं किवदंतियों के माध्यम से यहां के प्राचीन इतिहास के संबंध में कई जानकारियां प्राप्त होती है। जिससे यहां कि समृद्ध जनजातीय परम्पराओं के संबंध में भी जानकारी मिलती है। इसके संबंध में दो जनश्रुतियां प्राप्त होती है। जिसमें पहला मत घनश्याम सिंह नाग द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘बस्तर की प्राचीन राजधानी बड़े डोंगर‘ के अनुसार बड़े डोंगर के दक्षिण में स्थित गादीराव डोंगरी पहाड़ी है जिसे जनजातीय लोगों के बीच आस्था एवं श्रद्धा के रूप में पूजा जाता था। 

बड़ेडोंगर में निरवंशीय राजा का कोई वैध उत्तराधिकारी नहीं होने पर जनता द्वारा गद्दी पर नींबू को रखकर राजा का प्रतीकात्मक उत्तराधिकारी मान लिया गया और बड़ेडोंगर से तब से लिमऊ राजा का प्रतीकात्मक राज ही चलता रहा। गादीराव डोंगरी से कुछ दूर एक बड़ा चट्टान है जिसके छोर पर राजगद्दी की आकृति का पत्थर है जब किसी विषय पर निर्णय लेना होता तो ग्रामीण इसी चट्टान पर एकत्रित होकर नींबू की स्थापना कर धूप दीप द्वारा पूजन कर वांछित विषय पर चर्चा करते थे एवं फैसला होने पर नींबू को चार भागों में काट कर चारों दिशाओं में विसर्जित किया जाता था। जो परम्परा आज भी जीवित है आज भी यहां के ग्रामीण विभिन्न मुद्दों पर अपने आपसी फैसलों हेतु यहां आकर लिमऊ राजा के सामने चर्चा करते है।

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार कुमड़ा कोटिया राजा एवं काकतीय वंश के समय या उससे पहले बस्तर का राज पाट चलाने में लोगों को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में बडे डोंगेर क्षेत्र में कोर्राम परिवार राज गायता हुआ करता था। तब कोर्राम परिवार में तीन भाई हुए, तिर, विर, तलवार साय इनमें से एक विर साय जो सेवा पूजा व राज के काम से हमेशा बाहर रहता था और दो भाई तीर साय और तलवार साय खेती काम करते थे। तीनों भाइयों में विवाद खड़ा हुआ विर साय ने अपना राज गायता का कार्य छोड़ दिया तब पूजा विधान एवं राजपाठ संचालन में बस्तर राज्य के संचालन हेतु राजा की आवश्कता को देखते हुए राज्य के प्रमुखों ने बैठक बुलाई और एक नींबु जिसे स्थानीय भाषा में में लिमऊ कहते हैं को राजा मान कर सेवा पूजा एवं अर्जी विनंती करने लगे। जब भी किसी चीज के लिए निर्णय लेना होता तब नींबू के ऊपर चावल फूल चढ़ा कर विनती मांग जाता था अगर चावल गिर जाता तो लिमऊ राजा की हां मान लिया जाता था यह प्रथा कई वर्षों तक चलती रही। यह आज भी कोर्राम परिवार व आसपास के लोग के द्वारा सेवा पुजा किया जाता है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भी झांकी के प्रति हर्ष जाहिर करते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ की झांकी का विषय न केवल छत्तीसगढ़ के लिए, बल्कि पूरे देश के आदिवासी समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह झांकी आदिवासी समाज की गौरवशाली लोकतांत्रिक परंपराओं से दुनिया को परिचित कराएगी। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार छत्तीसगढ़ और जनजातीय समाज की अस्मिता और उनकी सांस्कृतिक समृद्धि से दुनिया को परिचित कराने के लिए लगातार काम कर रही है।