नवरात्रि के जगराता-गरबा के साथ मनाया जा रहा है तेलंगाना का लोकपर्व बतुकम्मा

नवरात्रि के जगराता-गरबा के साथ मनाया जा रहा है तेलंगाना का लोकपर्व बतुकम्मा

October 2, 2022 Off By NN Express

तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमा से जुडे़ होने से वहां के तीज-त्योहार बीजापुर में भी मनाये जाने लगे हैं

बीजापुर, 02 अक्टूबर । जिले में शारदीय नवरात्रि के मौके पर जगराता, गरबा के साथ जिले में बतुकम्मा लोकपर्व भी आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। बतुकम्मा लोकपर्व तेलंगाना की संस्कृति और परम्परा है। तेलंगाना की सीमा से सटे होने और रोटी-बेटी के रिश्ते के चलते बीजापुर क्षेत्र में भी यह पर्व प्रचलित है। बतुकम्मा लोकपर्व में स्त्री के सम्मान में मनाया जाने वाला तेलंगाना का लोकपर्व है। बतुकम्मा लोकपर्व में महिलाएं फूलों के सात परत बनाकर गोपुरम मंदिर की आकृति बनाती है और उसकी पूजा करती है। बीजापुर जिला तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमा से लगा होने के कारण वहां के तीज-त्योहार को बीजापुर में भी अब प्रमुखता से मनाया जाने लगा है।

बतुकम्मा का त्योहार तेलंगाना का प्रमुख पर्व है, जिसे शारदीय नवरात्रि में आश्विन मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या के आरम्भ से कुल 09 दिनों तक मनाया जाता है। भौंरे, तितलियां आदि फूलों के रस चूसने के कारण पहले दिवस को एंगली फूल (झूठे फूल) कहते हैं, आठवें दिवस में विराम होता है, ताकी अंतिम दिन अधिक से अधिक फूल मिल सके व बड़ा बतुकम्मा बना सके, जिसे अररेम कहते हैं। अंतिम दिन में बडे से बड़ा बतकम्मा बनाकर मनाते हैं। प्रतिदिन की तरह ग्राम की सुख, शांति व बरकत की प्रार्थना के साथ तालाब, नदी या नाले में विसर्जित किया जाता है व प्रसाद वितरण किया जाता है। कवि एवं साहित्यकार बीराराज बाबू के अनुसार बतुकम्मा तेलगू शब्द है, जिसका संधि विच्छेद बतकू अम्मा होता है, बतकू का अर्थ जीवन तथा अम्मा का मतलब मां होता है, अर्थात जीवन देने वाली मां ही बतुकम्मा है।

बीराराज बाबू के अनुसार इसमें सार्वजनिक स्थल पर समूह में एकत्रित होकर तुलसी के पौधे के साथ गौरम्मा (गौरी माता) की स्थापना कर पूजा किया जाता है। महिलाएं अनेक प्रकार के फूल तोडक़र लाते हैं और उपवास रहकर उनकी माला बनाते हैं। एक प्लेट या परात में फूलों की मालाओं को उनके आकार के अनुसार बड़े से छोटे क्रम में शंकु के आकार में सजाया जाता है। मालाओं से सजाने के दौरान अंदरुनी भाग जिसे गोपुरम कहते हैं उसमें सेम, तोरई व अन्य पत्तियों से भर दिया जाता है, ताकि मालाएं एक दूसरे से जुड़ी रहे। सबसे ऊपरी भाग में अंतिम छोटी माला के बीच जो खाली जगह होती है उसे कद्दू के पीले फूल को रखा जाता है, जिसका मध्य भाग उभरा होने के कारण शंकु के आकार को पूर्णता मिलती है। संध्याकाल में नौ दिन महिलाएं बतुकम्मा को निर्धारित स्थल पर गौरम्मा या तुलसी पौधे के पास रखकर घेरे में कतारबद्ध होकर गीत गाते व दोनों हाथों से ताली बजाते हुए नृत्य करते हैं। प्रत्येक गीत में कोई भी एक महिला प्रमुख रूप से गीत गाती हैं, और शेष कोरस देते हुए ताली बजाते हैं।