शादीशुदा लड़कियों को भी मिलेगी मृत मां-बाप की नौकरी, कलकत्ता हाई कोर्ट का राज्य सरकार के खिलाफ रूल जारी
October 3, 2022कोलकाता, 03 अक्टूबर । मृत मां-बाप की जगह उनकी विवाहित बेटी को भी नौकरी देने संबंधी अपने फैसले की अवमानना को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के खिलाफ रूल जारी किया है। तीन लड़कियों की याचिका पर हाई कोर्ट ने यह कदम उठाया है। ये हैं पूर्णिमा दास, अर्पिता सरकार और काकली चक्रवर्ती।
पूर्णिमा बीरभूम के सुदूर गांव नलहाटी की रहने वाली है। परिवार के सदस्यों में पिता, माता और तीन बहनें हैं। तीनों की शादी हो चुकी है। इनमें पूर्णिमा सबसे छोटी हैं। पिता हरुचंद्र दास पास के ग्राम पंचायत कार्यालय में चौकीदार का काम करते थे। 11 मई 2011 को काम के दौरान हरुचंद्र दास की मौत हो गई। परिवार का एक सदस्य मुआवजे के रूप में ”मानवता” के आधार पर नौकरी का हकदार है। पूर्णिमा ने 2012 में नौकरी के लिए आवेदन किया था। उनका दावा है कि मां बीमार हैं और उनके पास कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं है। इसलिए उसकी मां की जगह उसे नौकरी दी जाए। नौकरी मिलने पर वह अपनी मां की देखभाल करेंगी लेकिन राज्य पंचायत कार्यालय ने उस अनुरोध का जवाब नहीं दिया। उनका तर्क है कि राज्य में ऐसा कोई कानून नहीं है जो कहता है कि मृतक माता-पिता की विवाहित बेटियों को सरकारी नौकरी मिल सकती है। अधिकांश स्थानों पर पुरुषों के मामले में मृतक की पत्नी या पुत्र और महिलाओं के मामले में मृतक के बेटे को सरकारी नौकरी के लिए माना जा सकता है लेकिन विवाहित बेटियां रोजगार के लिए पात्र नहीं हैं। इस तर्क के खिलाफ पूर्णिमा ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
वहीं, नदिया के अमित सरकार राज्य पुलिस कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे। वह उस जिले के पुलिस अधीक्षक की गाड़ी चलाते थे। 19 जुलाई 2009 को अमित का निधन हो गया। अपने पीछे एक बूढ़ी मां, पत्नी और इकलौती बेटी अर्पिता को छोड़ गए हैं। तलाकशुदा अर्पिता अब अपने पिता के घर में रहती हैं। अर्पिता की मां शारीरिक बीमारी के कारण काम नहीं कर पा रही हैं। इसलिए यदि पिता के स्थान पर किसी पद पर नौकरी मिल जाए तो परिवार चलाना सुविधाजनक हो जाएगा। अर्पिता के मामले में सरकार ने यह भी कहा कि चूंकि वह शादीशुदा है, इसलिए उसे नौकरी देना संभव नहीं है। उनकी मां को नौकरी दी जा सकती है। अर्पिता ने इस पर कोर्ट का रुख किया है।
माता निवारानी चक्रवर्ती ने पीडब्ल्यूडी में चपरासी के रूप में कार्य किया। बेटी काकली अपनी मां की सरकारी नौकरी पर निर्भर थी। क्योंकि उसका पति विकलांग है। काम नहीं कर सकता काकली का बेटा भी शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर है। उत्तर 24 परगना की हाबरा नगर पालिका ने उन्हें भी यह कह कर नौकरी देने से इंकार कर दिया कि शादीशुदा लड़की को नौकरी नहीं दी जा सकती। इसी मामले में अब हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सौमेन सेन, न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति सौगत भट्टाचार्य की विशेष पीठ ने श्रम विभाग समेत राज्य के तीन विभागों के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना के नियम जारी किए। इस मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी। उस दिन तीनों विभागों के अधिकारियों को बताना होगा कि इतने दिन बाद भी उन्होंने कोर्ट के आदेश पर अमल क्यों नहीं किया।