कोरबा: जिले में मतदाता के मौन रहने से प्रत्याशी हो रहे बेचैन
April 13, 2024(कोरबा) जिले में मतदाता के मौन रहने से प्रत्याशी हो रहे बेचैन
कोरबा : लोकसभा चुनाव 2024 ने नामांकन शुरू होने के बाद अब चुनाव ने अपनी रफ्तार पकड़ ली है। कोरबा लोकसभा चुनाव क्षेत्र सीधे केंद्र से निगरानी में है और छत्तीसगढ़ की हॉट सीट बन चुका है। हाई प्रोफाइल हो चुके इस चुनाव को देख ऐसा प्रतीत हो रहा हैं की यह चुनाव शांति वर्सेस क्रांति का है, इस कोरबा लोकसभा चुनावी मैदान में पहली बार दोनों तरफ महिला आमने-सामने हैं। एक को भाभी तो दूसरी को दीदी कहकर संबोधित किया जाता हैं। इस चुनाव में इसे भाभी अपने ससुराल में चुनाव कह लड़ रही हैं तो दीदी इसे अपना मायका बता रही है। लोग इस पर चुटकी लेने लगे हैं कि ससुराल में तो ज्यादा हक भाभी का ही होता है, बेटी तो पराया धन ही होती है। वैसे रिश्ते-नाते और चुनाव में निभाने-निभाने का फर्क है, जिसे मतदाता भली-भांति समझते व निभाते आये हैं लेकिन अभी इनकी खामोशी प्रत्याशियों समेत समीक्षकों को बेचैन किये हुए है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की लहर में बह जाने को तत्पर सुश्री सरोज पांडेय के लिए कोरबा के विधायक और कैबिनेट मंत्री लखनलाल देवांगन सारथी बने हुए हैं। कैबिनेट मंत्री श्री देवांगन का चेहरा व काम किस हद तक तारणहार बन पायेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बता पायेगा, किन्तु प्रत्याशी का आयातित बड़ा तामझाम भी काफी चर्चा में है। कोरबा के सुधि मतदाता बड़े सजग होकर खामोशी से तेल और तेल की धार देख रहे हैं। इसमें एक यक्ष प्रश्न है कि जिस तरह लखनलाल, नकारात्मक वोटों को भुना पाएंगे, क्या वे अपनी तरह की जीत उनके लिए मुकम्मल करा पाएंगे ?
इस चुनाव में प्रखर राष्ट्रीय नेत्री की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। उन पर बाहरी होने का मुद्दा विपक्ष ने लपका है जो चुनावी अंत तक कायम रहने की संभावना जताई जा रही है। वैसे सुश्री सरोज पांडेय का कोरबा आना-जाना संगठनात्मक सिलसिले में विरले होता रहा है लेकिन चर्चाओं में शुमार है कि वे अपेक्षित अपनापन नहीं बना सकीं जबकि वे यहां की पालक सांसद भी रही हैं।
4 माह पूर्व संपन्न विधानसभा चुनाव में जनता ने बनावटी मुखौटा उतार कर असली चेहरा दिखा दिया। लोकसभा में भी बनावटी मुखौटा उतरने का डर है और सभी पार्टीजन अन्दर से भयभीत है, ऐसा लोगों का मानना है। बाउंसर और बाहरी पेड वर्कर चुनाव की नैया पार नहीं लगा सकते क्योंकि इनका स्वयं का कोई प्रभाव यहां नहीं है। किसी भी चुनाव में जातिगत समीकरण भी बहुत अहम होता है। बहरहाल ऐसा लग रहा हैं की भाभी वर्सेस दीदी की टक्कर में कोरबा लोकसभा में पिछडा़ वर्ग के मतदाता ही निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
चुनावी झंझावत में जब एक तरफ बड़ा तामझाम है और बंदिशें भी तमाम हैं, तब कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत के साथ पति डॉ. चरणदास महंत हाथ थामे सहारा दिए हैं। भाभी का वास्ता राजनीतिक परिवार से तो है लेकिन राजनीति के दाँव-पेंच अपेक्षाकृत नहीं जानतीं, तो उन्हें बाहरी आवरण से सजग करने डॉ. महंत साए की तरह साथ हैं। राष्ट्रीय प्रखर नेत्री के समक्ष गृहणी से राजनीति में आई सौम्य, सरल महिला हैं। अब यह जनता को तय करना है कि विकास क्या सिर्फ क्रांति और चीखने-चिल्लाने, गड़े मुर्दे उखाड़ने से ही लाई जा सकती है, या फिर सरलता, सज्जनता भी काम बनाते हैं।