खेती-बाड़ी में केंचुओं का अद्भुत योगदान

खेती-बाड़ी में केंचुओं का अद्भुत योगदान

November 24, 2023 Off By NN Express

यह तो जानी-मानी बात है कि केंचुए मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं और खेती को फायदा पहुंचाते हैं। लेकिन वास्तव में केंचुए खेती में कितना फायदा पहुंचाते हैं? अपने तरह के प्रथम अध्ययन में इसकी गणना करके बताया गया है कि केंचुओं की बदौलत हर साल 14 करोड़ टन अधिक अनाज पैदा होता है।

पैदावार में इस योगदान की गणना करने के लिए कोलोरेडो स्टेट युनिवर्सिटी के मृदा और कृषि-पारिस्थितिकीविद स्टीवन फोंटे और उनके सहयोगियों ने पूरे विश्व में केंचुओं का वितरण और अलग-अलग स्थानों पर उनकी प्रचुरता देखी और उसे हर जगह की कृषि उपज से जोड़ा। विश्लेषण करते हुए स्वयं पौधों में आई उत्पादकता में वृद्धि के कारक को भी ध्यान में रखा गया। 

उन्होंने पाया कि विश्व स्तर पर धान, गेहूं और मक्का जैसी फसलों में केंचुए लगभग 7 प्रतिशत का योगदान देते हैं। दूसरी ओर, सोयाबीन, दाल वगैरह जैसी फलीदार फसलों की उपज वृद्धि में इनका योगदान थोड़ा कम है – लगभग 2 प्रतिशत। फलीदार फसलों में कम योगदान का कारण है कि ये फसलें सूक्ष्मजीवों के सहयोग से स्वयं नाइट्रोजन प्राप्त कर सकती हैं; इसलिए पोषक तत्वों के लिए कृमियों पर कम निर्भर होती हैं।

नेचर कम्युनिकेशंस में शोधकर्ता बताते हैं कि ग्लोबल साउथ के कई हिस्सों में केंचुओं से लाभ और भी अधिक है। मसलन उप-सहारा अफ्रीका में, जहां अधिकांश मिट्टी बंजर या अनुपजाऊ हो गई है और उर्वरक उनकी पहुंच में नहीं हैं, वहां केंचुए पैदावार को 10 प्रतिशत तक बढ़ा देते हैं। लेकिन अनुमानों में सावधानी की ज़रूरत है क्योंकि केंचुओं के वितरण सम्बंधी अधिकांश अध्ययन उत्तरी समशीतोष्ण देशों से थे। 

उम्मीद की जा रही है कि यह अध्ययन नीति निर्माताओं और भूमि प्रबंधकों को मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने वाले और मिट्टी को स्वस्थ बनाने वाले जीवों की भूमिका पर अधिक ध्यान देने को प्रोत्साहित करेगा। उनकी सलाह है कि मिट्टी में केंचुओं के अनुकूल वातावरण रखने के लिए किसान कम जुताई करें। सघन जुताई या ट्रैक्टर से जुताई में ये कट-पिट जाते हैं।

हालांकि तथ्य तो यह भी है कि केंचुओं की सलामती के अनुकूल मिट्टी बनाने और जुताई न करने की सलाह देना जितना आसान है उतना ही मुश्किल उस पर अमल करना है। उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जहां मिट्टी अक्सर अनुपजाऊ हो जाती है वहां के गरीब किसान केंचुओं की आबादी बढ़ाने के जाने-माने तरीकों, जैसे मिट्टी की नमी बढ़ाने या जैविक पदार्थ डालने, का खर्च वहन नहीं कर पाते। इसके अलावा, जुताई न करने से खरपतवार की समस्या भी बनी रहती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो केंचुओं से लाभ लेना एक बड़ी चुनौती है। (स्रोत फीचर्स)