शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पारम्परिक खेल जरूरी

शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पारम्परिक खेल जरूरी

October 14, 2022 Off By NN Express

महासमुंद ,14 अक्टूबर ।  मानव जीवन में खेलों का महत्व हमेशा से रहा है और हमेशा रहेगा। वहीं बच्चों के चहुंमुखी विकास के लिए शारीरिक व मानसिक खेल अति आवश्यक है। यह देखने में आया है कि आजकल बालक बालिकाओं में नये-नये खेलों के प्रति अधिक रूझान बढ़ा है। आजकल गली-मोहल्लों में छोटे-छोटे बच्चे स्केटिंग, क्रिकेट, जूडो-कराटे, विशु आदि खेलों को खेलते दिखाई देते है। उसके अलावा मोबाईल फोन पर भी इलेक्ट्रोनिक खेलों के प्रति भी बच्चों का अत्यधिक रूझान देखने को मिलता है। पूरे भारत सहित छत्तीसगढ़ प्रदेश में पारम्परिक खेलों का हमेशा से ही विशेष महत्व रहा है, परन्तु आज की नई पीढ़ी पारम्परिक खेलों से निरन्तर दूर होती जा रही है।

वह यह नहीं समझते कि हरेक प्रकार का खेल शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। नियमित रुप से खेल खेलना हमारे मानसिक कौशल के विकास में काफी सहायक होता है। यह हमारे अंदर प्रेरणा, साहस, अनुशासन और एकाग्रता लाने का कार्य करता है। देश के अधिकांश राज्यों के गाँव-देहात में अपने पारम्परिक खेल जैसे गिल्ली-डंडा, कंचे, कबड्डी, खो-खो, सितौलिया, मारदडी, भौरा आदि खेल खेले जाते थे। लेकिन आधुनिक परिवेश में काल के ग्रास बनते जा रहे है। दूसरा खेल मैदानों की कमी भी इसका कारण है। अब अधिकांश विद्यालयों में खेल मैदान की कमी है, वही अभिभावक भी बच्चों की रूचि के अनुसार ही खेल खेलने की सुविधाओं को मुहैया करवा देते हैं।

जिसके कारण पारम्परिक खेल निरन्तर पिछड़ते और बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। हम सबको याद होगा कि जब हम छोटे थे तब हम सभी ने अपने-अपने पारंपरिक खेल खेलें है। लेकिन हमारे बच्चे कितने पारंपरिक खेल खेलते हैं या जानते हैं? दुख की बात है कि आज के युग में बच्चे लगातार टेलीविजन, मोबाईल और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से चिपके रहते हैं। प्रगतिशील और आधुनिक बनने के दौड़ में बच्चे अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। खेल का महत्व भूलते जा रहे हैं। आज के बच्चे मोबाईल, लैपटॉप और वीडियो गेम्स में ही खेल खेलते हैं। परंतु खेल का महत्व बच्चों की बढ़ती ग्रोथ के साथ जानना आवश्यक है।

इस बात को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समय रहते बखूबी समझा और दूरदृष्टि दिखाते हुए ध्यान दिया। आधुनिक परिवेश में काल के ग्रास बनते जा रहे छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों से नई पीढ़ी को अवगत कराने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़िया ओलंपिक आयोजन की शुरुआत की है। छत्तीसगढ़ में पहली बार हो रहे पारंपरिक खेलों को और खेलकूद प्रतियोगिता का पूरे छत्तीसगढ़ में जबरदस्त उत्साह है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक में गिल्ली डंडा खेलकर आयोजन शुभारंभ किया और खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाया।

इसी के साथ ओलंपिक खेल प्रतियोगिता की शुरुआत हो गयी।  छत्तीसगढ़िया ओलंपिक प्रतियोगिता में दलीय श्रेणी गिल्ली डंडा, पिट्ठुल, संखली, लंगडी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी और बांटी कंचा जैसे पारंपरिक खेलों को शामिल किया गया है। इसमें 18 वर्ष तक, 18 से 40 और 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला एवं पुरुष प्रतिभागी हिस्सा ले सकेंगे।

नवीन परिवेश खेलों के कारण बच्चों का पूर्णतया शारीरिक विकास भी नहीं हो पाता। जबकि यह पारम्परिक खेल आर्थिक दृष्टि से काफी सस्ते होते है। आधुनिकता दौर के खेल काफ़ी मंहगे तो होते ही है बल्कि पाश्चात्य खेलों को खेलने वाले बच्चों के अभिभावकों को यह खेल आर्थिक दृष्टि से भी महंगे पड़ रहे हैं। क्योंकि स्केटिंग, क्रिकेट, जुडो-कराटे खेलों को सुरक्षित खेलने के लिए अनेकों उपकरण व पोशाके खरीदना ज़रूरी होता है। जो कि काफी महंगे दाम चुकाकर खरीदनी पड़ती है।