Aditya-L1 Mission: धरती से 9.2 लाख किमी दूर पहुंचा आदित्य-एल1, ISRO ने पहली बार मंगल मिशन पर किया था ये कारनामा

Aditya-L1 Mission: धरती से 9.2 लाख किमी दूर पहुंचा आदित्य-एल1, ISRO ने पहली बार मंगल मिशन पर किया था ये कारनामा

October 1, 2023 Off By NN Express

नईदिल्ली I भारत के सूर्यमिशन को लेकर इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने शनिवार (30 सितंबर) को बड़ी जानकारी साझा की. इसरो ने ट्वीट कर बताया कि आदित्य-एल1 मिशन के तहत भेजा गया अंतरिक्ष यान पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से सफलतापूर्वक निकलकर 9.2 लाख किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय कर चुका है. आदित्य-एल1 का अंतरिक्ष यान अपने नए घर लैग्रेंज प्वाइंट 1 की ओर लगातार बढ़ रहा है.

इसरो ने आदित्य-एल1 मिशन की जानकारी देते हुए कहा कि अब ये यान सन-अर्थ लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल1) की ओर अपना रास्ता तलाश रहा है. ट्वीट में कहा गया है कि ये लगातार दूसरी बार है, जब इसरो किसी अंतरिक्ष यान को पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र के बाहर भेज सका. पहली बार ऐसा मंगल ऑर्बिटर मिशन के दौरान किया गया था. आदित्य एल1 स्पेसक्राफ्ट को दो सितंबर को लॉन्च किया गया था.

क्या है लैंग्वेज प्वाइंट 1?
चंद्रयान-3 के जरिए भारत को मिली कामयाबी के बाद इसरो ने सूर्य के बारे शोध करने की ठानी थी, जिसको अंजाम देने के लिए आदित्य-एल1 मिशन को लॉन्च किया गया. जहां दो बड़े ऑब्जेक्ट की ग्रेविटी उनके बीच में मौजूद किसी छोटे ऑब्जेक्ट को थामे रखती हैं, Gms लैग्रेंज प्वाइंट वन लोकेशन कहा जाता है. दरअसल, इस जगह पर स्पेसक्राफ्ट को बहुत कम फ्यूल की जरूरत पड़ती है. पृथ्वी और सूर्य के बीच पांच लैग्रेंज प्वाइंट (एल1 से एल5) हैं, जिसमें से लैग्रेंज प्वाइंट 1 काफी मायने रखता है, क्योंकि यहां से बिना किसी परेशानी के सूरज पर नजर रखी जा सकती है.

आदित्य एल1 के साथ होंगे ये ‘दोस्त’
आदित्य एल1 मिशन पृथ्वी-सूर्य के एल1 प्वाइंट के करीब ‘हैलो ऑर्बिट’ में चक्कर लगाएगा. पृथ्वी से इस प्वाइंट की दूरी लगभग 15 लाख किलोमीटर है. भारत के इस मिशन का मकसद सूर्य के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और कोरोना पर नजर रखना है, ताकि उससे जुड़ी अहम जानकारियों को पृथ्वी पर भेजा जा सके. 

लैग्रेंज प्वाइंट वन पर आदित्य-एल1 अकेला नहीं होगा, बल्कि यहां पर उसे कुछ दोस्तों का साथ भी मिलने वाला है. उसके साथ ‘इंटरनेशनल सन-अर्थ एक्सप्लोरर’ (ISEE-3), जेनेसिस मिशन, यूरोपियन स्पेस एजेंसी का लीसा पाथफाइंडर, चाइना का चांग-5 लूनर ऑर्बिटर और नासा का ‘ग्रेविटी रिकवरी एंड इंटीरियर रिकवरी (GRAIL) मिशन’ भी मौजूद रहने वाले हैं. वर्तमान में नासा का विंड मिशन सूर्य का अध्ययन कर रहा है. इसके जरिए भेजा गया डाटा कई सारे स्पेस मिशन के लिए बेहद जरूरी है.