छत्तीसगढ़-विशाखापट्टनम रेल रूट 4 दिनों से बंद :कई ट्रेनें प्रभावित, लैंडस्लाइड के बाद 300 कर्मचारी मलबा हटाने में जुटे, 2-3 दिन और लग सकता है

छत्तीसगढ़-विशाखापट्टनम रेल रूट 4 दिनों से बंद :कई ट्रेनें प्रभावित, लैंडस्लाइड के बाद 300 कर्मचारी मलबा हटाने में जुटे, 2-3 दिन और लग सकता है

September 27, 2023 Off By NN Express

छत्तीसगढ़-विशाखापट्टनम रेल रूट पर चार दिनों से ट्रेनों का आना-जाना बंद है। ओडिशा के मनाबार और जरती रेलवे स्टेशन के बीच केके (किरंदुल-कोत्तावालसा​​​) 24 सितंबर को लैंडस्लाइड हुआ था। यह मार्ग अब तक बहाल नहीं हो सका है, जिससे 5 से ज्यादा यात्री ट्रेनें और मालगाड़ियां प्रभावित हुई हैं। 25 से ज्यादा पोकलेन और JCB के जरिए से मलबा हटाने का काम किया जा रहा है। करीब 300 से ज्यादा मजदूर और कर्मचारी काम पर लगे हुए हैं। अफसरों का दावा है कि मार्ग बहाल होने में 2 से 3 दिन का और वक्त लग सकता है।

ये ट्रेनें हुईं प्रभावित

प्रभावित ट्रैक पर हर दिन 4 से 5 यात्री ट्रेनें चलती हैं। जिसमें किरंदुल से विशाखापट्टनम तक चलने वाली किरंदुल-विशाखापट्टनम पैसेंजर और नाइट एक्सप्रेस, समलेश्वरी एक्सप्रेस, राउरकेला-जगदलपुर एक्सप्रेस, हिराखंड एक्सप्रेस समेत अन्य शामिल हैं।

रेलवे और NMDC को रोजाना करोड़ों का नुकसान

सभी ट्रेनें ओडिशा के कोरापुट में रुक कर वहीं से लौट रही हैं। जगदलपुर तक आवागमन ठप हो गया है। हर दिन किरंदुल से आयरन लेकर जाने वाली करीब 30 मालगाड़ियों की आवाजाही भी बंद है। रेलवे और NMDC को रोजाना करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

3500 घन मीटर मिट्टी हटाना बाकी

रेलवे के अफसरों के मुताबिक लैंडस्लाइड से करीब 10 हजार घन मीटर मिट्टी पटरी पर आ गई थी। करीब 7500 घन मीटर मिट्टी को हटाया जा चुका है। अब भी लगभग 3500 घन मीटर मिट्टी हटाना बाकी है। मलबा हटने के बाद ही ओएचई का मरम्मत किया जा सकेगा।

रेलवे के GM ने किया निरीक्षण

ईको रेलवे के GM मनोज शर्मा ने लैंडस्लाइड स्थल का निरीक्षण किया। उनके साथ DRM सौरभ प्रसाद भी मौजूद थे। DRM ने GM को मार्ग बहाल करने के लिए किए जा रहे काम की जानकारी दी।

लैंडस्लाइल होने के बाद ट्रैक पर कुछ इस तरह मलबा आ गया था।

56 साल पहले 55 करोड़ में बनी थी केके रेलवे लाइन

किरंदुल-कोत्तावालसा रेलवे लाइन (केके) का निर्माण 1967 में 55 करोड़ रुपए की लागत से जापानी तकनीक के सहयोग से किया गया था। इसके निर्माण का मकसद रेलवे के जरिए लौह अयस्क का परिवहन करना था।