Chandrayaan-3: सफलतापूर्वक पूरी हुई कक्षा बदलने की चौथी प्रक्रिया; जानें अभी कहां पहुंचा चंद्रयान-3

Chandrayaan-3: सफलतापूर्वक पूरी हुई कक्षा बदलने की चौथी प्रक्रिया; जानें अभी कहां पहुंचा चंद्रयान-3

July 20, 2023 Off By NN Express

बेंगलूरू। भारत के बहुप्रतीक्षित अभियान चंद्रयान-3 के कक्षा बदलने की चौथी प्रक्रिया (अर्थ बाउंड ऑर्बिट मैन्यूवर) गुरुवार को सफलतापूर्वक पूरी हो गई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान सगंठन (इसरो) ने बताया कि चंद्रयान-3 अपने मिशन पर लगातार सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। अब अगली फायरिंग 25 जुलाई को दोपहर दो से तीन बजे के बीच करने की योजना है।

इससे पहले 15 जुलाई को चंद्रयान-3 ने सफलतापूर्वक पृथ्वी की पहली कक्षा में प्रवेश कर लिया था। इसके बाद चंद्रयान ने 17 जुलाई को पृथ्वी की दूसरी और 18 जुलाई को पृथ्वी की तीसरी कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश किया था। तब चंद्रयान 3 अब पृथ्वी से 51400 किलोमीटर x 228 किलोमीटर दूर स्थित पृथ्वी की कक्षा में मौजूद था।

लॉन्चिंग कब हुई? 
मिशन ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी और अगर सब कुछ योजना के अनुसार होता है तो यह 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा। मिशन को चंद्रमा के उस हिस्से तक भेजा जा रहा है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता। 

क्यों खास है चंद्रयान-3 की यात्रा? 
फिलहाल मिशन चंद्रमा की अपनी यात्रा पर है, जो बेहद खास है। इससे पहले चंद्रयान-3 को इसरो के ‘बाहुबली’ रॉकेट एलवीएम3 से भेजा गया। दरअसल, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए बूस्टर या कहें शक्तिशाली रॉकेट यान के साथ उड़ते हैं। अगर आप सीधे चांद पर जाना चाहते हैं, तो आपको बड़े और शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत होगी। इसमें ईंधन की भी अधिक आवश्यकता होती है, जिसका सीधा असर प्रोजेक्ट के बजट पर पड़ता है। यानी अगर हम चंद्रमा की दूरी सीधे पृथ्वी से तय करेंगे तो हमें ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नासा भी ऐसा ही करता है लेकिन इसरो का चंद्र मिशन सस्ता है क्योंकि वह चंद्रयान को सीधे चंद्रमा पर नहीं भेज रहा है। 

सभी मिशन दो से चार दिन में पहुंच गए, हमें इतना समय क्यों लग रहा? 
एक निश्चित दूरी के बाद चंद्रयान को आगे की यात्रा अकेले ही पूरी करनी होती है। चीन हो या रूस, सभी मिशन दो से चार दिन में पहुंच गए। सभी ने जंबो रॉकेट का इस्तेमाल किया। चीन और अमेरिका 1000 करोड़ से ज्यादा खर्च करते हैं लेकिन इसरो का रॉकेट 500-600 करोड़ में लॉन्च होता है। दरअसल, इसरो के पास ऐसा कोई शक्तिशाली रॉकेट नहीं है जो यान को सीधे चंद्रमा की कक्षा में ले जा सके। पृथ्वी से चंद्रमा तक की दूरी महज चार दिन की ही है।