क्या है जीआई टैग? कैसे और किसे मिलता है, नोट कर लें जवाब, प्रतियोगी परीक्षा में आ सकते हैं प्रश्न

क्या है जीआई टैग? कैसे और किसे मिलता है, नोट कर लें जवाब, प्रतियोगी परीक्षा में आ सकते हैं प्रश्न

July 1, 2023 Off By NN Express

Current Affairs 2023: जीआई टैग क्या होता और यह किसे और क्यों दिया जाता है. इनके जवाब भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयार करने वाले अभ्यर्थियों को जानने चाहिए. इस तरह से सवाल भी भर्ती परीक्षाओं में पूछे जा सकते हैं. प्रतियोगी एग्जाम में कई ऐसे सवाल आते है, जिनका जवाब बहुत ही आसान होता है,लेकिन जानकारी नहीं होने कारण उसका जवाब अभ्यर्थी नहीं दे पाते हैं.

करेंट अफेयर्स की सीरीज में आइए जानते हैं कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में कितने उत्पादों को जीआई टैग दिया गया. यह टैग किस मंत्रालय के तहत दिया जाता है और इसके क्या मायने होते हैं.

कौन देता है जीआई टैग?

अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समेटने में अग्रणी उत्तर प्रदेश के सात विभिन्न उत्पादों को जीआई टैग मिला है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करने वाली संस्था Registrar of Geographical Indications यह टैग देती है. इसका मुख्यालय तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में है.

गौरा पत्थर हस्तशिल्प

सफेद रंग का यह पत्थर महोबा जिले में पाया जाता है. विज्ञान इसे पाइरो फ्लाइट स्टोन के रूप में मान्यता देता है. स्थानीय कारीगर इस पर अपने हुनर का जादू हाथों से उकेरते हैं. अनेक सुंदर आकर की कलाकृतियां तैयार होती हैं. ये पत्थर अपेक्षाकृत ज्यादा चमकदार होते हैं.

अमरोहा का ढोलक

अमरोहा का ढोलक बहुत खास होता है. इसकी लकड़ी खास है. इसमें आम, कटहल, सागौन की लकड़ी इस्तेमाल की जाती है. ढोलक में यहां बकरी की खाल का इस्तेमाल होता है. इस तरह यहां की ढोलक खास हो जाती है और इसकी आवाज में एक अलग तरह की खनक होती है.

बाराबंकी का हथकरघा उत्पाद

उत्तर प्रदेश की राजधानी से सटे बाराबंकी जिले में हथकरघे से बड़ी संख्या में बुनकर जुड़े हुए हैं. इन हथकरघों से बने कपड़ों का अलग महत्व है. ये कपड़े देखने से लेकर पहनने तक में अलग महसूस होते हैं. इस जिले में 20 हजार से अधिक करघे हैं और इनसे 50 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है.

बागपत का घरेलू साज-सज्जा

बागपत में हथकरघे के माध्यम से कारीगर घरेलू साज-सज्जा के लिए परदे, चद्दर आदि बनाते हैं. इन वस्त्रों की बुनाई में सूती धागे इस्तेमाल में लिए जाते हैं. यह काम बागपत के अलावा मेरठ में ही होता है लेकिन जीआई टैग बागपत को ही मिला है.

कालपी का हाथों से बना कागज

जालौन यानी उरई जिले में कालपी ऐतिहासिक कस्बा है. यहां हस्त निर्मित कागज बनाने की शुरुआत करने का श्रेय मुन्नालाल खद्दरी को जाता है. वह गांधी से प्रेरित थे और साल 1940 में इस काम को शुरू किया था. उसके बाद अनेक परिवार इससे जुड़े. कुछ जानकार कहते हैं कि यह इससे भी पुरानी कला है.

मैनपुरी की तारकशी

तारकशी एक कला है, जो प्रायः पीतल के महीन तार को लकड़ी में पिरोई जाती है. इससे अनेक खूबसूरत कलाकृतियां तैयार होती हैं. इस कला में ज्यादातर काम अभी भी हाथ से करने की परंपरा है. शुरू में इस तारकशी का इस्तेमाल खड़ाऊं में किया जाता था. बाद में इसके अन्य उपयोग शुरू हुए.

संभल हार्न क्राफ्ट

जीआई टैग मिलने से संभव है कि इस कला को पुनर्जीवन मिल जाए. इसके कारीगर मृत पशुओं की खाल, हड्डियों से अनेक सजावटी, उपयोगी वस्तुएं बनाते हैं. यह काम शत-प्रतिशत अभी भी हाथ से ही किया जाता है. इसलिए इसे श्रम साध्य कहा गया है.