बस्तर दशहरा में फूल रथ की परिक्रमा के बाद बेल नेवता पूजा विधान संपन्न

बस्तर दशहरा में फूल रथ की परिक्रमा के बाद बेल नेवता पूजा विधान संपन्न

October 2, 2022 Off By NN Express

जुड़वा बेल तोड़ने से पूर्व बेल देवी की पूजा विधान होगा 02 अक्टूबर को

जगदलपुर, 02 अक्टूबर । बस्तर दशहरा में फूल रथ की परिक्रमा के बाद शुक्रवार रात्रि में बेल नेवता (निमंत्रण) पूजा विधान संपन्न की गई। बेल नेवता विधान के तहत शहर सीमा से लगे ग्राम सरगीपाल जाकर बेल वृक्ष में जुड़वा बेल फल की पूजा की जाती है। पूजा-अर्चना के पश्चात् जुड़वा बेल फल की शाखा में नारियल और सुपारी के साथ लाल कपड़ा बांधकर दशहरा का निमंत्रण दिया जाता है। स्थानीय बोली में निमंत्रण को नेवता कहा जाता है।

राज परिवार के सदस्य जुडवा बेल को तोड़ने के एक दिन पूर्व रात्री यहां आकर विधिवत् पूजा-पाठ के बाद इन जुड़वा बेल फल पर लाल कपड़ा बांधकर बेल नेवता पूजा विधान करने के बाद, 02 अक्टूबर को राज परिवार के सदस्य सुबह 11 बजे पुन: जाकर सरगीपाल में बेल वृक्ष की जगह पर राजपरिवार के सदस्य व अन्य बेल देवी की पूजा-अनुष्ठान करेंगे। इसके बाद ग्राम-पुजारी के द्वारा जुड़वा बेल तोड़कर उन्हें भेंट स्वरूप दिया जाएगा। ग्रामीण इन फलों की विदाई को बेटी की विदाई जैसा मानते हैं। वे इस मौके पर जमकर हल्दी खेलते हैं। इन युग्म बेल में देवी दुर्गा का और महालक्ष्मी का रूप माना जाता है, इन युग्म फलों को राजगुरू और पुजारी युग्म बेल को दन्तेश्वरी मंदिर में लाकर स्थापित कर देते हैं।

लोक साहित्यकार एवं बस्तर के संस्कृति के जानकार रुद्र नारायण पाणिग्राही ने बताया कि इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में माहेश्वरी, शाखाओं में दाक्षायनी अर्थात् राजा दक्ष की पुत्री, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी, फलों में कात्यायनी का वास होता है। काटों में भी शक्तियां समाहित हैं, पौराणिक मान्यता है कि महालक्ष्मी का वास भी बेल वृक्ष में है। ऐसे में जिस वृक्ष में जुड़वा फल लगे हो निश्चित ही इनमें देवी दुर्गा और महालक्ष्मी का वास होता है।

पुजारी महादेव बताते हैं कि जगदलपुर और सरगीपाल के आस-पास के गांवों में कई बेल के वृक्ष है, लेकिन किसी भी बेल की वृक्ष में एक साथ दो या दो से अधिक युग्म फल नहीं लगते। जिस बेल वृक्ष में जुडवा बेल फल मिलता है, उस वृक्ष की सभी शाखाओं में जुड़वा फल नहीं लगते और ना ही वर्ष भर जुड़वा फल दिखाई देता है, किन्तु बस्तर दशहरा पर्व के समीप आते ही जुड़वां फल दिखाई देता है, इसे ग्रामीण दैवीय कृपा मानते हैं।