BIG BREAKING NEWS : Supreme Court का तलाक को लेकर अहम फैसला, पति-पत्नी को अब नहीं करना होगा 6 महीने का इंतजार

BIG BREAKING NEWS : Supreme Court का तलाक को लेकर अहम फैसला, पति-पत्नी को अब नहीं करना होगा 6 महीने का इंतजार

May 2, 2023 Off By NN Express

दिल्ली,02 मई   सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संवैधानिक बेंच ने आज तलाक को लेकर अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा है कि अगर पति-पत्नी के रिश्ते टूट चुके हों और सुलह की गुंजाइश ही न बची हो, तो वह भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत बिना फैमिली कोर्ट भेजे तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा।

तलाक के 5 मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी। जिसके तहत जून 2016 को सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने मामले को विचार के लिए संविधान पीठ को भेजा था। संविधान पीठ को इस बात पर फैसला लेना था कि क्या सहमति से तलाक लेने के लिए जरूरी प्रतीक्षा समय यानी वेटिंग पीरियड के रूप में बिताई जाने वाली 6 माह के समय में छूट दी जा सकती है। लगभग 6 साल से ज्यादा चली सुनवाई के बाद 29 सितंबर 2022 को पांच सदस्य संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसे आज सार्वजनिक किया गया।

पति-पत्नी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित करते हुए कहा था कि सामाजिक बदलाव में थोड़ा समय लगता है और कभी-कभी कानून लाना आसान होता है। लेकिन समाज को इसके साथ बदलने के लिए राजी करना मुश्किल होता है। अदालत में सुनवाई के दौरान भारत में विवाह में एक परिवार की बड़ी भूमिका निभाने की बात स्वीकार की थी। आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वह अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए शादी के अपरिवर्तनीय टूटने के आधार पर विवाह को तुरंत भंग कर सकता है। कोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि वह जीवन साथियों के बीच आई दरार भर नहीं पाने के आधार पर किसी शादी को खत्म करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है। जिन शादियों के बचने की कोई गुंजाइश ना हो उनमें 6 माह का समय बिताए जाना सही नहीं है। आपसी सहमति से तलाक के इच्छुक पति पत्नी को बिना फैमिली कोर्ट भेजे ही तलाक के लिए इजाजत दी जा सकती है।

बच्चों का पति पत्नी के बीच बराबरी का आधार तय करने वाले भी मानक तय किए जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए वरिष्ठ वकीलों को न्याय मित्र भी नियुक्त किया था। जिसमें इंदिरा जयसिंह, कपिल सिब्बल, वी गिरी, दुष्यंत दवे व मीनाक्षी अरोड़ा जैसे देश के दिग्गज वकील शामिल थे। कपिल सिब्बल ने तर्क दिया था कि कस्टडी और गुजारा भत्ता तय करने की प्रक्रिया को तलाक की प्रक्रिया से इतर रखा जाना चाहिए। ताकि बिना मर्जी लंबे समय तक साथ रह कर मानसिक रूप से परेशान होकर महिला और पुरुषों को आत्महत्या से बचाया जा सके। अधिवक्ता वी गिरी ने कहा कि पूरी तरह टूट चुके शादियों के बाद भी एक साथ रहने को मानसिक क्रूरता माना जा सकता है। इंदिरा जयसिंह ने तर्क दिया कि पूरी तरह टूट चुके शादियों को बिना 6 महीना का वेटिंग पीरियड बिताये खत्म किया जा सकता है।

इंदिरा जयसिंह के तर्कों पर अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तर्क दिया कि जब संसद ने पति पत्नी के तलाक का आधार इन सब को नहीं माना है तो सुप्रीम कोर्ट को भी इसकी अनुमति नहीं देनी चाहिए। जिस का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि धारा 142 का उपयोग करते ही सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक दायरों से बाहर आ जाता है।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की अध्यक्षता जस्टिस संजय किशन कौल कर रहे थे। जिसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एएस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी भी शामिल थे। बेंच ने अपने फैसले में कहा कि हमने व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है। संविधान पीठ ने व्यवस्था दी कि हमने अपने निष्कर्षों के अनुरूप व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है। यह सरकारी नीति के विशिष्ट या बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं होगा।