Raigarh रियासत की अंतिम रानी, जिनकी सादगी की थी दुनिया दीवानी
February 12, 2023रायगढ़,12 फरवरी । रायगढ़ के लिए 18 जनवरी का दिन झकझोर देने वाला था इस दिन रायगढ़ रियासत के अंतिम शासक राजा ललित सिंह की दूसरी पत्नी और रायगढ़ रियासत की अंतिम रानी शकुंतला देवी का निधन हो गया। 25 जून 1940 को ओडिसा के कालाहांडी में जन्मी शकुंतला देवी से राजा ललित सिंह ने 1959 में शादी की। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर के सालेम स्कूल, फिर पुत्री शाला रायगढ़ से पढ़ी। इसके बाद वह कार्मेल स्कूल में बतौर शिक्षक कार्य करने लगीं।
राजा ललित सिंह शकुंतला देवी पर इस कदर मोहित थे उन्होंने धर्म बदल कर विवाह किया क्योंकि तब हिंदू मैरिज एक्ट आ चुका था इस नाते वह दूसरी शादी नहीं कर सकते थे। राजा साहब ने उनसे 15 जुलाई 1959 को भारत की सबसे बड़ी मस्जिद में से एक कलकत्ता के नाखोदा मस्जिद में 20 हजार मेहर देकर विवाह किया। हालांकि वह बाद में हिंदू धर्म में वापस आ गए पर अपनी पत्नी को उनके धर्म को मानने से नहीं रोका, रानी साहिबा ने ताउम्र इसाई धर्म को ही माना पर अपने बच्चों को हिंदू धर्म के संस्कार दिए।
धर्म निरपेक्षता का इससे बड़ा उदाहरण शायद जिले में मिले। रानी साहिबा का अंतिम संस्कार भी इसाई धर्म के अनुसार हुआ। रानी साहिबा ने अपना पूरा जीवन बहुत ही शालीनता से जिया। सक्रिय राजनीति के दौर में वह 1962 में जशपुर क्षेत्र से विधायक भी रहीं। राजा ललित सिंह के साथ भोपाल में दो दशक तक सियासी दांवपेंच भी सीखीं। समय के साथ ही वह लाइमलाइट से दूर हो गई और 4 दशक तक कांग्रेस सेवादल की सेवा करते अपनी आखिरी सांस तक उसी को ही मानी।
मध्यभारत के रजवाड़ों में शकुंतला देवी के नाम को बहुत ही सम्मान से लिया जाता है क्योंकि उन्होंने राजनीति के अलावे अपने तीन बच्चों की परवरिश बेहतर तरीके से की। उनकी 4 संतानों में राजकुमार मनोज सिंह,राजकुमारी रूपकमल सिंह, स्व. राजकुमार संजय सिंह और राजकुमार संदीप सिंह हैं। राजा ललित सिंह के सबसे बुरे दिनों में भी इन्हीं रानी ने उनका साथ दिया। राजा की सबसे दुलारी और प्रिय रानी शकुंतला देवी ने सदैव उनका सम्मान और सेवा जतन किया।
रानी के सबसे बड़े बेटे मनोज सिंह (63 साल) बताते हैं “मां किसी भी लाग लपेट में नहीं रही। राजा साहब से विवाह होने के साथ ही पारिवारिक कलह चरम सीमा पर पहुंच गया था इस वजह से राजा साहब ने अपनी धर्मपत्नी और बच्चों को लेकर राजपरिवार की शांति बनाये रखने के लिये मोती महल का वैभव छोड़ राम भांटा बंगलौ में रहने का निर्णय लिया। रानी साहिबा ने हमें सामान्य बच्चों की तरह पाला। उनसे किसी का दुख देखा नहीं जाता था अपने सामर्थ के अनुसार जरूरतमंदों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहती थी। कोई भी उनके पास शिकायत या समस्या लेकर आता तो फट से उसका हल निकाल देतीं थीं।