वनीकरण का मतलब महज़ पेड़ लगाने से नहीं है

वनीकरण का मतलब महज़ पेड़ लगाने से नहीं है

December 10, 2022 Off By NN Express

संयुक्त राष्ट्र ने 2021-2030 के दशक को पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली का दशक घोषित किया है। और कई देशों ने वित्तदाताओं की मदद से उजाड़ जंगलों को बहाल करने के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम भी शुरू कर दिए हैं। पिछले हफ्ते कॉप-27 में, युरोपीय संघ और 26 देशों ने जलवायु परिवर्तन को धीमा करने के लिए वनों को बढ़ावा देने के लिए 16 अरब डॉलर खर्चने का वादा किया है चूंकि पेड़ कार्बन सोखकर जलवायु परिवर्तन को थाम सकते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा पुनर्वनीकरण पर खर्च किया जाएगा। लेकिन इस बारे में मालूमात बहुत कम है कि इसे कैसे किया जाए।

विश्व संसाधन संस्थान के अनुसार वर्ष 2000 से 2020 के बीच वन क्षेत्र में कुल 13 लाख वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है, जिसमें चीन और भारत अग्रणि रहे हैं। लेकिन इन नए वनों में से लगभग 45 प्रतिशत प्लांटेशन हैं, यानी इन वनों में एक ही प्रजाति के वृक्षों का वर्चस्व है। प्राकृतिक वनों की तुलना में ये जैव विविधता और दीर्घकालिक कार्बन भंडारण के लिहाज़ा कम लाभप्रद हैं।कई पुनर्वनीकरण परियोजनाएं  इस बात पर ज़्यादा ध्यान देती हैं कि कितने पेड़ लगाए गए और इन बातों पर कम ध्यान देती हैं कि कितने जीवित बचे, कितने स्वस्थ हैं, उन वनों में कितनी विविधता है, या वे कितना कार्बन सोखते हैं। दरअसल, हम इस बारे में बहुत कम जानते हैं कि किस तरह का वनीकरण कारगर है, कहां कारगर है, और क्यों।

पिछले हफ्ते प्रकाशित फिलॉसॉफिकल ट्रांज़ेक्शन ऑफ रॉयल सोसाइटी का एक विशेषांक इस बारे में मार्गदर्शक है। इनमें से एक अध्ययन दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की वनीकरण परियोजनाओं पर गहराई से नज़र डालता है जो इसकी चुनौतियां उजागर करती हैं। यूके सेंटर फॉर इकॉलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी की वन पारिस्थितिकीविद लिंडसे बैनिन और उनके साथियों ने इस बाबत डैटा का अध्ययन किया कि 176 पुनर्विकसित स्थलों की अलग-अलग मिट्टी और जलवायु में अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे कितनी अच्छी तरह से पनपे। पाया गया कि कुछ स्थानों पर, पांच में से मात्र एक पौधा जीवित रहा, जबकि औसतन मात्र 44 प्रतिशत पौधे ही 5 वर्ष से अधिक जीवित रह पाए।

अलबत्ता, इस अध्ययन ने एक उत्साहजनक बात दर्शाई है: परिपक्व पेड़ों के पास रोपे गए पौधों में से औसतन 64 प्रतिशत पौधे जीवित रहे, शायद इसलिए क्योंकि ये जगहें उतनी बर्बाद नहीं हुई थीं। अन्य अध्ययन बताते हैं कि बागड़ लगाकर मवेशियों को बाहर रखने और मिट्टी की हालत में सुधार करने जैसे उपायों से भी पौधों के जीवित रहने की संभावना बढ़ सकती है, लेकिन ये उपाय महंगे हो सकते हैं। एकाध ऐसी प्रजातियों के पौधे लगाने से भी मदद मिल सकती है जो अपने आप आसानी से फल-फूल-फैल जाती हैं। ये प्रजातियां अन्य प्रजातियों के पनपने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। चियांग माई विश्वविद्यालय के पादप पारिस्थितिकीविद स्टीफन इलियट और पिमोनरेट तियानसावत के अध्ययन का निष्कर्ष है कि प्रारंभिक प्रजातियां ऐसी होनी चाहिए जो उस क्षेत्र की स्थानीय हों, जो खुले क्षेत्रों में पनपती हों, तेज़ी से बढ़ती हों, खरपतवार को पनपने से रोकती हों I

और बीज फैलाने वाले पशु-पक्षियों को आकर्षित करती हों। ऑस्ट्रेलिया में एक झाड़ी, (ब्लीडिंग हार्ट – होमलैंथस नोवोगुइनेंसिस) का उपयोग प्रभावी स्टार्टर के तौर पर किया जाता है। इसकी जड़ें मिट्टी को पोला करती हैं और इसकी पत्तियां मिट्टी में पोषक तत्व जोड़ती हैं, जो अन्य प्रजातियों को वहां पनपने में मदद करता है। और इसके गूदेदार हरे फल बीज फैलाने वाले जानवरों को आकर्षित करते हैं।

पौधारोपण के लिए सही जगह का चुनाव भी महत्वपूर्ण है। वेगनिंगेन युनिवर्सिटी एंड रिसर्च के पारिस्थितिकीविद लुइस कोनिग और कैटरीना जेकोवैक ने 25 वर्षों तक ब्राज़ील की बंद हो चुकी टिन खदानों के कारण बंजर हो चुकी भूमि में पुर्नवनीकरण के प्रयासों का अध्ययन किया। वे बताते हैं कि डंपिंग एरिया, जहां की मिट्टी अनुपजाऊ और ज़हरीली हो गई हो वहां पेड़ों को वृद्धि करने में कठिनाई होती है। खनन गड्ढों और बचे-खुचे जंगलों के पास पौधारोपण के परिणाम बेहतर रहे।

एक किफायती तरीका हो सकता है कि किसी संपूर्ण क्षेत्र को पौधों से पूरा पाटने की बजाय छोटे-छोटे भूखंडों में पौधारोपण करें जो जंगल को पनपाने का काम करेंगे और उनके चारो ओर जंगल अपने-आप फैलेगा। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की एंडी कुलिकोव्स्की और कैरेन होल द्वारा कोस्टा रिका के 13 प्रायोगिक स्थलों के अध्ययन में पाया गया कि किसी जगह पर एक या चंद प्रजाति के पौधों लगाने की तुलना में यह तरीका विविधतापूर्ण जंगल के पुन: उगने में बेहतर हो सकता है। इसे एप्लाइड न्यूक्लिएशन कहा गया है। इस तरीके से पेड़ों को अधिक जगह के साथ-साथ अधिक प्रकाश मिलता है।

वैसे जंगल अपने दम पर भी काफी कुछ बहाल कर सकते हैं। वन पारिस्थितिकीविद रॉबिन शेडॉन 1997 से उत्तरी कोस्टा रिका के पूर्व में चारागाह रहे एक उजाड़ भू-क्षेत्र की निगरानी कर रहे थे, जहां एक भी पेड़ नहीं लगाया गया था। अब, वहां एक स्वस्थ प्राकृतिक जंगल है। योजना बनाने में एक महत्वपूर्ण कारक यह भी है कि पुनर्वनीकरण स्थानीय लोगों को कैसे प्रभावित करता है और स्थानीय लोग पुनर्वनीकण को कैसे प्रभावित करते हैं। पुनर्वनीकरण खेती के लिए उपलब्ध भूमि में कमी ला सकता है, लेकिन स्थानीय समुदाय को इसका मुआवज़ा दिया जा सकता है – और नया जंगल उन्हें इमारती लकड़ी, शिकार के अवसर और आय के अन्य स्रोत दे सकता है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुनर्वनीकरण स्थानीय लोगों के लिए फायदेमंद हो।

यॉर्क विश्वविद्यालय के संरक्षण विज्ञानी रॉबिन लोवरिज और एंड्रयू मार्शल ने पूर्वी तंज़ानिया में पुनर्वनीकरण परियोजनाओं के अध्ययन में पाया कि वह जंगल बेहतर हाल में था और लोग अधिक खुश थे जहां प्रबंधन समुदाय के लोग कर रहे थे। विषय विशेषांक के सह-संपादक मार्शल का कहना है कि कई अन्य मुद्दों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। जैसे बेलें और काष्ठ-लताएं – जो वनों को तूफानों से बचा भी सकती हैं और प्रकाश को रोककर पुनर्वनीकरण को थाम भी सकती हैं। इसी प्रकार से परियोजनाओं की सफलता का पैमाना और प्रबंधन के तौर-तरीके के मुद्दे भी शामिल हैं। इनके जवाब स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर करेंगे। 

युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वन पारिस्थितिकीविद सिमोन लुईस पुनर्वनीकरण की गति को लेकर उत्साहित हैं लेकिन नवीन जंगल की गुणवत्ता को लेकर चिंतित हैं। चिंता का एक विषय यह है कि जहां देश वनों की क्षति को कम करने के कठिन लक्ष्यों को हासिल करने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं, वहीं पुराने जंगलों को अब भी काटा जा रहा है, और उनकी जगह नए जंगल अन्यत्र लगाए जा रहे हैं। इसका मतलब है कि कुल मिलाकर वनों में तो कोई कमी नहीं आ रही है लेकिन अधिक जैव विविधिता और अधिक कार्बन सोखने की क्षमता वाले वनों की जगह कम जैव विविधता और कम कार्बन सोखने की क्षमता वाले वन लेते जा रहे हैं।