मेडिकल दाखिले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती, आरक्षण रोस्टर को रद्द करने की मांग

मेडिकल दाखिले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती, आरक्षण रोस्टर को रद्द करने की मांग

November 26, 2022 Off By NN Express

रायपुर,26 नवंबर । छत्तीसगढ़ में हो रहे मेडिकल दाखिले का आरक्षण संबंधी विवाद सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है। सर्वोच्च न्यायालय में एक छात्रा की ओर से याचिका दायर हुई है। उसमें मेडिकल प्रवेश के लिए 9 अक्टूबर और एक नवम्बर को जारी आरक्षण रोस्टर को रद्द करने का आग्रह किया है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूण की बेंच में मंगलवार को इसकी सुनवाई होनी है। मेडिकल काउंसलिंग में शामिल अनुप्रिया बरवा नाम की एक छात्रा की ओर से अधिवक्ता मृगांक शेखर ने याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए पहले से 2018 और 2021 के नियम बने हुए हैं।उसमें अनुसूचित जाति को 13%, अनुसूचित जनजाति को 32% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण का प्रावधान बना हुआ है। उच्च न्यायालय में इस रोस्टर को कभी चुनौती नहीं दी गई।

इसलिए 19 सितम्बर को आरक्षण कानून पर आया उच्च न्यायालय का फैसला उसपर प्रभावी नहीं है। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद सरकार ने कहीं भी आरक्षण नियम प्रकाशित नहीं किया है। चिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने 9 अक्टूबर को मेडिकल की पीजी कक्षाओं में प्रवेश के लिए और एक नवम्बर को यूजी में प्रवेश के लिए अनुसूचित जाति के लिए 16%, अनुसूचित जनजाति के लिए 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 14% आरक्षण का रोस्टर जारी कर काउंसलिंग शुरू कर दिया। 32% आरक्षण के हिसाब से अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों की 923 सीटों में से 284 सीटें मिलनी थी। नये रोस्टर से इस वर्ग को केवल 180 सीट मिल रही है। अनुप्रिया बरवा 185वें स्थान पर हैं। यानी मेडिकल प्रवेश नियम के मुताबिक उनका दाखिला तय था, लेकिन DME के नये रोस्टर से उसका दाखिला नहीं हो पा रहा है।

अदालत को बताया, उसे सुनना जरूरी है

उच्चतम न्यायालय में बताया गया कि इस तरह की याचिकाएं उच्च न्यायालय में भी लगी हुई हैं। इसमें सात नवम्बर, 10 नवम्बर, 15 नवम्बर, 16 नवम्बर और 24 नवम्बर को इस मामले में सुनवाई हो चुकी है। कोई नोटिस जारी नहीं हुआ है। अनुप्रिया बरवा ने इंटरवेंशन अप्लिकेशन दायर की है। वह पेंडिंग है। 15 नवम्बर से कॉलेजों में पढ़ाई शुरू हो चुकी है। ऐसे में इसको सुनना जरूरी है। इस मामले में बी.के. मनीष ने एक मिसलेनियम अप्लिकेशन दायर की थी। याचिका पर सुनवाई के लिए मंगलवार की तारीख तय हो जाने के बाद यह आवेदन वापस ले लिया गया।