धर्मेंद्र प्रधान ने उच्च एवं तकनीकी शिक्षा पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया
November 13, 2024नई दिल्ली । केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज नई दिल्ली में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सचिवों के साथ उच्च एवं तकनीकी शिक्षा पर एक दो-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में शिक्षा और उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार भी उपस्थित थे। इस अवसर पर उच्च शिक्षा विभाग के सचिव के. संजय मूर्ति, उच्च शिक्षा विभाग के अपर सचिव सुनील कुमार बरनवाल, यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. एम. जगदीश कुमार, उच्च शिक्षा विभाग की संयुक्त सचिव श्रीमती मनमोहन कौर, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सचिव, शिक्षाविद, संस्थानों के प्रमुख और इस मंत्रालय के अधिकारी भी मौजूद थे।
इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री प्रधान ने कहा कि यह कार्यशाला गहन अकादमिक विचार-विमर्श के लिए एक मंच के रूप में काम करेगी, विशेष रूप से कैसे शिक्षा जीवन जीने को आसान बनाने, प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को हासिल करने में महत्वपूर्ण सुधार ला सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि देश को उद्योग 4.0 द्वारा प्रस्तुत अवसरों का उपयोग करके एक उत्पादक अर्थव्यवस्था बनना है और ऐसी शिक्षा अवसंरचना को तेजी से विकसित करना है, जो वैश्विक मानकों को भी पार कर जाए। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा अवसंरचना एक बहु-आयामी अवधारणा है और ये ईंट-और-मोर्टार संरचनाओं को विकसित करने से परे है।
मंत्री ने अकादमिक प्रमुखों और प्रशासकों के लिए ध्यान केंद्रित करने हेतु पांच प्रमुख क्षेत्रों का सुझाव दिया। पहला है, फंडिंग के अभिनव तरीकों के जरिये सरकारी विश्वविद्यालयों को मजबूत करना; दूसरा है, उद्योग की मांग के अनुसार तथा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार पाठ्यक्रम को संरेखित और तैयार करने के लिए थिंक टैंक स्थापित करना; तीसरा है, वैश्विक समस्याओं के समाधान में नेतृत्व संभालने के लिए अनुसंधान और नवाचार के लिए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाना; चौथा है, प्रतिष्ठित केंद्रीय/राज्य संस्थानों के साथ सहयोग के जरिये प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में अकादमिक नेतृत्व विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और पांचवां है, खेल, वाद-विवाद, कविता, नाटक, प्रदर्शन कला (एनईपी के जरिये पहले से ही क्रेडिट दिया जा चुका है) के माध्यम से परिसर जीवन की जीवंतता को पुनर्जीवित करना और इन गैर-शैक्षणिक क्षेत्रों को प्राथमिकता देना। श्री प्रधान ने भारतीय भाषाओं में शिक्षण के महत्व पर भी बल दिया। देश के छात्रों के प्रति जवाबदेही पर जोर देते हुए, उन्होंने कहा कि शिक्षा में भारत का वैश्विक नेतृत्व स्थापित करने के लिए सब लोगों को मिलकर काम करना होगा।