कोरबा: रेत माफियाओं को अब पुलिस और खनिज विभाग का खौफ नहीं.. रात के अंधेरे के साथ दिनदहाड़े ऐसे चला रहे धंधा..

कोरबा: रेत माफियाओं को अब पुलिस और खनिज विभाग का खौफ नहीं.. रात के अंधेरे के साथ दिनदहाड़े ऐसे चला रहे धंधा..

August 10, 2024 Off By NN Express

0  रेत की तस्करी पर नहीं रोक पा रहा प्रशासन

कोरबा, कलेक्ट्रेट के कुछ ही दूरी से लगे दादर के नदी नालों से रेत की तस्करी हो रही है, जिसे लेकर क्षेत्र के लोगों में आक्रोश देखा जा रहा है। रेत की तस्करी कोई और नहीं यहां रहने वाला एक ठेकेदार के द्वारा किया जा रहा है दादर नाले में इन दिनो धड़ल्ले से रेत की तस्करी किया जा रहा है पहले तो रेत तस्कर रात के अंधेरे में रेत की चोरी करते थे लेकिन अभी दिनदहाड़े रेत की चोरी कर रहे हैं इसकी जानकारी पुलिस और प्रशासन को है लेकिन पुलिस भी कार्यवाही करने में कतरा रही है। यही वजह है कि अवैध कारोबार तेजी से फल फूल रहा है। यहां पर कई इलाकों में अवैध घाटो से रात के अंधेरे में धड़ल्ले से रेत निकाली जा रही है, लेकिन प्रशासन है कि वह चुप्पी साधे बैठा है। किसी ठोस कार्रवाई के आभाव में रेत माफिया सरकार को लाखों का चूना लगा रहा है। सूत्र बताते हैं कि पुलिस के साथ मिलकर रेत तस्कर रेत की तस्करी कर रहे है

फाइल फोटो

0 जेसीबी से होता है खनन

नदी नालों के रेती निकालने पर पूर्ण प्रतिबंध है, बावजूद इसके जेसीबी लगाकर रेत का उत्खनन किया जाता है तथा 400 से 500 ट्रैक्टर रेत नदी के बाहर इकट्ठा रखा जाता है जिसे रात्रि में परिवहन किया जाता है। पूरे मामले की जानकारी खनिज विभाग एवं राजस्व विभाग को होने के बाद भी कार्रवाई नहीं हो पाना इनकी कार्यप्रणाली पर संदेह उत्पन्नाा करता है।

0 नाम मात्र की कार्रवाई

शिकायत मिलने पर खनिज विभाग द्वारा गिने चुने लोगों को पकड़ कर कार्रवाई की खानापूर्ति की जाती है। यही वजह है कि इस अवैध कारोबार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। रेत चोरी के मामले में चालान अथवा जुर्माना के अलावा कोई सख्त सजा नहीं होने से कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। अवैध रूप से कर रहे खनन के दौरान नदियों के अंदर आधुनिक मशीनों द्वारा रेत निकाल कर ढेर लगाया जाता है जिसे रात के अंधेरे में डंपर व टिप्पर में भरकर तस्करी किया जाता है।

0 रेत माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण

रेत के अवैध कारोबार में राजनीतिक लोग सीधे जुड़े हैं। कई बार रेत के अवैध कारोबार करते पकड़े जाने पर जनप्रतिनिधियों द्वारा छोड़े जाने का दबाव बनाया जाता है। यही वजह है कि खनिज विभाग सीधे कार्रवाई करने में हिचकिचाता है। पुलिस और प्रशासन भी मौन साध लेते हैं