तीर्थों के दर्शन करने यात्रा करनी पड़ती है, तीर्थ बनने के लिए स्वयं में रहना पड़ता

तीर्थों के दर्शन करने यात्रा करनी पड़ती है, तीर्थ बनने के लिए स्वयं में रहना पड़ता

October 23, 2022 Off By NN Express

रायपुर ,23 अक्टूबर  यदि मुस्कुराकर जीवन जीना है तो आज का प्रवचन बहुत ध्यान से सुनिए कि जो अपनी वस्तु होती है उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ता है, पर वस्तु को पीछे मुड़कर देखना पड़ता है। ज्ञानियों निज वस्तु के लिए आंखे ही नहीं खोलनी पड़ती है, आंखे तो बंद रहती है,फिर जो है सो है।

भगवान के दर्शन करना है तो मंदिर जाना पड़ेगा, तीर्थों के दर्शन करना है तो यात्रा कर तीर्थ जाना पड़ेगा परंतु तीर्थ बनने के लिए कहीं नहीं जाना पड़ेगा,स्वयं में ही रहना पड़ता है। यह उपदेश सन्मति नगर फाफाडीह में ससंघ विराजित आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने रविवार को अपनी विशेष चतुर्मासिक प्रवचन माला में दिया।

आचार्य ने कहा कि ज्ञानियों मल अप्रयोगी है, लेकिन सूअर के लिए प्रयोगी है, इसलिए क्या सुंदर है,क्या असुंदर है यह विकल्प छोड़ दीजिए,जिसको जो अच्छा लगता है उसके लिए वही सुंदर है और जिसको जो अच्छा नहीं लगता है उसके लिए वह असुंदर है। जिसमें क्षमता और योग्यता नहीं है तो उसे निपनिया (बगैर पानी मिला) दूध मत पिलाना, क्योंकि उसे पचेगा नहीं। किसी को दूध सुख देता है तो किसी को दूध दुख देता है,ऐसे ही मित्र शुद्ध वीतरागी धर्म मिथ्या दृष्टियों को दुख देता है।