CJI को चाय पर बुला हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने दिया ऐसा ऑफर, फौरन भांप गए इरादा; कह दिया था ना

CJI को चाय पर बुला हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने दिया ऐसा ऑफर, फौरन भांप गए इरादा; कह दिया था ना

March 16, 2024 Off By NN Express

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में रिवर्स लॉबिंग भी होती है. बकौल पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़, जैसे ही किसी कैंडिडेट का नाम नियुक्ति के लिए उछलता है, उसके खिलाफ एक लॉबी लग जाती है…

हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम के जरिए होती है. उच्च या उच्चतम न्यायालय में जज की नियुक्ति के लिए कोई औपचारिक आवेदन नहीं मंगाया जाता है. बॉम्बे हाईकोर्ट के एडवोकेट और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे अभिनव चंद्रचूड़, पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब Supreme Whispers में लिखते हैं कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जजशिप के लिए भले ही कोई फॉर्मल अप्लीकेशन प्रोसेस न हो लेकिन दशकों से जोड़तोड़ और लॉबिंग चलती आ रही है. कॉलेजियम सिस्टम भी इससे अछूता नहीं है.

RREAD MORE: CAA मोबाइल एप: अब मोबाइल ऐप से भी मिलेगी भारत की नागरिकता, CAA के तहत कर सकते है आवेदन

जज ने CJI को चाय पर बुलाया
अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब में न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए जोड़-तोड़ और लॉबिंग के कई सनसनीखेज किस्से बयां किये हैं. ऐसा ही एक किस्सा 70 के दशक का है, जब पीबी गजेंद्रगडकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) हुआ करते थे. अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब में जस्टिस गजेंद्रगडकर की आत्मकथा के हवाले से लिखते हैं कि जिस वक्त गजेंद्रगडकर सीजेआई थे, उन्हें हाई कोर्ट के एक चीफ जस्टिस ने कॉल किया और शनिवार की सुबह अपने घर चाय पर आमंत्रित किया.

ठुकरा दिया था वकील का न्योता
जस्टिस गजेंद्रगडकर के कार्यकाल में एक और दिलचस्प किस्सा हुआ. एक वकील ने उन्हें डिनर पार्टी में आमंत्रित किया, लेकिन सीजेआई ने उस पार्टी में जाने से साफ मना कर दिया. कुछ दिनों बाद सीजेआई को पता लगा कि जिस वकील ने वो डिनर पार्टी रखी थी, उसकी हाई कोर्ट में बतौर जज नियुक्ति हो गई है. उसने खुद स्वीकार भी किया कि उस पार्टी में जो लॉबिंग की थी, वह उसकी नियुक्ति में काम आई.

पार्टियों पर लगी पाबंदी
अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि बाद में एक दौर ऐसा आया जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और जज ऐसी पार्टियों से किनारा करने लगे. ऐसे निमंत्रण को शक की निगाह से देखा जाने लगा. कई हाईकोर्ट में तो ऐसी पार्टियों के खिलाफ अलिखित नियम बन गए. जैसे- बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने तय किया वो किसी प्राइवेट पार्टी का न्योता स्वीकार नहीं करेंगे, बशर्ते किसी की शादी-विवाह न हो.

अभिनव लिखते हैं कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एम. हिदायतुल्लाह (जो बाद में सीजेआई भी बने) जब दिल्ली में चीफ जस्टिस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने आए तो उन्हें जस्टिस बोस ने किसी भी प्राइवेट पार्टी का इनविटेशन स्वीकार करने से साफ मना कर दिया. जस्टिस बोस ने उनसे कहा कि कुछ वकीलों की ख्वाहिश जज बनने की है, और इसी लॉबिंग के लिए पार्टियां आयोजित करते हैं.

रिवर्स लॉबिंग भीहाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) में सिर्फ नियुक्ति के लिए ही लॉबिंग या जोड़-तोड़ नहीं की जाती है, बल्कि किसी की नियुक्ति रुकवाने के लिए भी जबरदस्त लॉबिंग होती है. अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब में पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़ (YV Chandrachud) के हवाले से लिखते हैं कि जैसे ही किसी कैंडिडेट का नाम नियुक्ति के लिए उछलता है, उसके खिलाफ एक लॉबी लग जाती है और उसकी नियुक्ति रुकवाने के लिए पूरी ताकत झोंक देती है.

इसका चर्चित उदाहरण जस्टिस पीवी सावंत का है. 1986 में जब चर्चा चली कि जस्टिस सावंत को सुप्रीम कोर्ट में अप्वॉइंट किया जा सकता है तो उनकी नियुक्ति रुकवाने के लिए पूरी लॉबी लग गई. उस वक्त जस्टिस सावंत बॉम्बे हाई कोर्ट में सीनियरिटी के क्रम में आठवें नंबर पर थे. उनकी हाई कोर्ट के ही एक दूसरे जज जस्टिस लेंटिन से तल्खी चल रही थी और दोनों की नियुक्ति एक दिन आगे पीछे हुई थी.